Monday 21 November 2016

पुरूष, Male




पुरूष मतलब मजबूत, कठोर, हिम्मती, निर्णायक
और अपने सुख के लिए अग्रसर कर्मी

उसकी आकांक्षाओं में पसंदीदा भोजन,
घर, उसके सुख-सुविधाओं की वस्तुएं
और उसी में शामिल स्त्री भी होती है

ईश्वर ने उसके अंदर इन सब चीजों को पाने के लिए
विशाल इच्छाशक्ति, असीमित ताकत बक्शी हैं

वही ईश्वर ने शायद जानबूझकर पुरूष की तुलना में
स्त्री को कमजोर बनाया ताकि पुरूष अपनी मजबूती का फायदा
उठा स्त्री को भोग सके व इसके परिणामस्वरूप स्त्री मां बने
और जीवन प्रक्रिया चलती रहे

सोचने की बात हैं
अगर स्त्री पुरूष के बराबर मजबूत रहे तो उसे भोगने ही क्यों दे
स्त्री सुंदर, कोमल, आकर्षक, बुद्धिमान, एवं
औरों के लिए भी सोचने वाली होती है
वहीं पुरूष कठोर, अनाकर्षक व मतलबी होते हैं
अगर वह पुरूष की तुलना में शरीर से कमजोर ना होती
तो वह उन्हें संबंध क्यों बनाने देती

पुरूष द्वारा स्पर्श के दौरान ना केवल उसके दाढ़ी गड़ते हैं
बल्कि उसके मजबूत बहुपाश ऐसे फील कराते हैं
जैसे अगर उसके हिसाब से ना चले तो सारा जीवन
वह अपने बाहों में ही गुजारने के लिए मजबूर कर देगा

इस वजह से भी प्रायः महिलाओं को अनचाहे भी हां करना पड़ता हैं
मगर महिला द्वारा ना करने की एक बड़ी वजह यह भी है कि
प्रायः मर्द पूरा मर्द नहीं होता

मर्द के लिए मर्दानगी का मतलब स्त्री को बहला-फुसलाकर,
मनाकर या जबरदस्ती भी उसके संवेदनशील अंगों से खेलना,
मजा लेना और उसके अंदर अपना स्पर्म या पुरूषत्व डालना भर बस है

पुरूष के लिए इतनी ही संतुष्टि की चीज है
मगर महिला के लिए इतना ही काफी नहीं
उसे अपने स्त्रीत्व की संतुष्टि भी चाहिए होती है
मगर अधिकतर मर्द के वश की ये बात नहीं होती

ये बात चाहे सार्वजनिक रूप से स्त्री स्वीकारे ना स्वीकारें
लेकिन अपनी सहेलियों के बीच या फिर मन ही मन
ये बात अधिकतर स्त्रियां जानती है
मगर इससे मर्द को मतलब क्या
वे तो अपने तथाकथित मर्दानगी और संतुष्टि से ही खुश है

अगर समाज जागरूक नहीं होता तो
 उसके लिए अन्य सुविधाजनक वस्तुओं के तरह
स्त्री को भी भोगकर छोड़ देना बहुत आसान होता
ना वह अपने संभोग से उत्पन्न बच्चे की जिम्मेदारी लेता
और ना संभोग किए स्त्री का


वैसे आज भी बहुत कुछ बदला नहीं  है
जागरूक समाज की वजह से भोगने के लिए एक स्त्री
और उनसे उत्पन्न बच्चे पुरूष के जिम्मेवारी जरूर आ गए हैं
व इसके परिणामस्वरूप वे उस स्त्री के सुख-सुविधा
व बदले में अपने इशारों पे चलाने के लिए उपलब्ध रखते ही है

मगर घर के बाहर भी पता नहीं पुरूष
कितनी स्त्रियों का उपभोग करता होगा
अपनी पत्नी के सामने भी दूसरी स्त्रियों के रूप, रंग
व उसके यौवन पर चर्चा, उसका स्त्री के प्रति
कामुक आचरण व व्यवहार की अभिव्यक्त करता है

मगर पुरूष के इन तमाम बातों के अलावा
उनमें यह सबसे अच्छा है कि वह जब तक जीता है
अपनी खुशियों को पाने के लिए अथक प्रयास करता है
और उसकी प्राप्ति में ही अपना सुख महसूस करता है

जबकि महिला दूसरों के लिए जीती रहती है
मगर अपनी खुशियां चुन नहीं पाती
आंचल में दूध और आंखों में पानी जैसे
नकारात्मक कहावत महिला के लिए है
और शायद आज भी समाज ऐसा ही है जिसमें महिला खुश नहीं
तो इस हिसाब से जीवन मूल्य में, अपने प्रयासों मंे
और सुखी रहने को जीवन समझने में
महिला से पुरूष बहुत आगे हैं

जब तक महिला भी ये समझेगी नहीं
कि सबसे अधिक खुशी अपने आप को खुश रखने में है
उसके लिए प्रयासों में है
महिला पिछड़ी रहेगी और जिंदगी उसकी
मगर अधिकार उस पर औरों का रहेगा

-कुलीना कुमारी, 19-11-15

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