Do not have any home |
क्या हमारा सचमुच ही कोई घर नहीं
जब पति की जुल्म खतम ना हो
अगर वह हमें घर से निकाल दे
या उसका साथ हमें नरक से भी बदतर लगे
और हम खुद उसके साथ न रहना चाहे
तो हम जाए तो कहां जाए
अपने मां-बाप के घर
शादी के बाद हमारा न रहा
अब उनके लिए बेटी कम
अतिथि ज्यादा हो गए हैं
या कहीं अलग से कमरा लेके रह लूं
और बच्चों को भी अपने साथ रख लूं
मगर ये भी संभव कहां
पिता के सुविधाओं के आश्रित बच्चे
हमारे मामूली कमाई के पैसे पर कहां रह पाएंगे
और मैं भी कहां अदा कर पाऊंगी
इस महंगाई में कमरे का किराया
दाल-रोटी और न्यूनतम सुविधाओं का खर्चा
तो क्या बच्चों को पति के साथ छोड़कर
अपने चाहने वाले के साथ शिफ्ट हो जाऊं
मगर वह भी कितने दिनों तक चलेगा
जब मेरे जिस्म को भोगकर मेरा प्रेमी थक जाएगा
और उसे मुझमें नयापन लगनी बंद हो जाएगी
तो वह भी फिर मुझे रोड पर छोड़ कर आ जाएगा
तब हमें कहां जाना चाहिए-महिला आश्रम
मगर सुनने में आया है कि यह महिला के ठहरने का जगह कम
पुरूषों के लिए आसानी से उपलब्ध होने वाली
महिलाओं के जगह के रूप में अधिक उपयोग की जाती है
सुना तो यह भी है कि महिला आ तो सकती है
मगर उसे अपने मन से जाने नहीं दिया जाता
और जिस घर में अपनी मरजी नहीं चलती है
वह घर कम कैदखाना अधिक है
कैदखाना तो वैश्यालय भी है
देखा है रेडलाइट एरिया में महिलाओं की दुर्दशा
उसे यहां भी बंद करके रखा जाता है
जो महिला इस कृत्य से ऊब कर
खुली दुनिया में अपने हिसाब से जीना चाहे
उसे इसकी इजाजत नहीं है
तो क्या पति, परिवार व दुनियावालों के जुल्म
व संभावना को देखते हुए हार मान लूं
खुदखुशी कर लूं क्या
मगर इससे मैं क्या साबित कर पाऊंगी
क्या साबित कर पाऊंगी कि मैं गलत नहीं थी
गलत था-पुरूषवादी रिवाज
अपने ही मां-बाप का शादी के बाद
बिटिया को अपने घर से बेदखल करना
और जब मां-बाप ने ही उसे दोयम दर्जें का समझा
तो समाज में भी कही सम्मानजनक स्थान न होना
मैं क्या करूं, समझ नहीं पा रही हूं
मगर घर, परिवार, समाज सबसे मेरा विश्वास उठ रहा है...
-कुलीना कुमारी, 12/3/2015
Picture-Curtesy by http://www.desipainters.com
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