Sunday 4 December 2016

कामना : पार्ट -3, Desire Part-3



प्रतिकात्मक तस्वीर

मगर यह खेल उतनी देर तक नहीं चला जितना कि कामना चाहती थी। अपने को खास दिखाने के चक्कर में व कामना को अधिक तैयार करने के प्रयास स्वरूप मोहन भी अधिक उŸोजित हो गया था और जल्दी ही उसकी पुरुषार्थ खतम हो गयी और वह निढाल सा हो गया। कामना अभी तृप्ति नहीं हुई थी मगर मोहन का यह रूप देख वह समझ गयी कि अब और उससे कुछ होने वाला नहीं। उसने मोहन से कुछ कहा नहीं और अपना कपड़ा ठीक करते हुए वाशरूम से फ्रेश होकर आ गयी, तब तक मोहन भी उठ चुका था और उससे पुनः प्यार जताते हुए अपने घर चला गया।

मगर कामना के मन में जैसे बेचैनी रह गयी थी। मोहन के साथ वाली घटना को लेकर कामना सोचने लगी थी, ‘‘ जो भी मैंने किया, मोहन का साथ लिया व इसके लिए उसे प्रोत्साहित किया, क्या वो सब ठीक था? जिस रिश्ते के बीच संबंध बनाना गलत बताया गया, क्या उसके बीच संबंध कायम करना ठीक था? शायद नही। यह गलत है। गोलू से वो किया भी था तो वो मेरा देवर लगता मगर मोहन की तो मैं काकी लगती। रिश्ते को कलंकित किया मैंने और बदले में मोहन से मुझे कुछ खास मिला भी नहीं। अगर कोई देख लेता तो...आगे से मुझे इसका ध्यान रखना चाहिए। वैसे भी बुद्धिमानी इसमें कि अगर किसी की वजह से बदनामी हो तो उसका फायदा मिलना चाहिए मगर मुझे फायदा पहुंचाने की मोहन की क्षमता नहीं तो फिर उसके वजह से मुझे बदनाम होने का रिस्क नहीं लेना चाहिए।’’ ऐसे विभिन्न प्रकार के विचार कामना के मन में आते-जाते रहे।

रात हो चुकी थी मगर सास आई नहीं थी। आज वह चाहती थी कि काश सास आ जाय तो उसका ध्यान बंटे। वह किसी भी तरह इस घटना को भूल जाना चाहती थी मगर अकेलापन जैसे उसके विचार को कुछ और सोचने के तरफ ले ही नहीं जा रहा था। उसने अपने मन को काफी समझाया और इस घटना ने जैसे उसके मन में प्यार व सेक्स के प्रति अरूचि पैदा कर दी। वह जैसे-तैसे सोने की कोशिश करने लगी। मगर नींद भी जैसे नाराजगी जता रही थी। फिर उसने अपनी डायरी निकाल कोड वर्ड में आज की घटना के बारे में लिखा। अपनी परिस्थति, जरूरत और उठाए गए कदम के बारे में लिखी और आगे से उसे क्या करना चाहिए, क्या नहीं करना चाहिए, उससे जुड़ी कसमें भी लिखी। काफी कुछ जब कागज पर उतर गया तो उसका मन जैसे हल्का हुआ और फिर सो पायी।

सुबह हो चुकी थी और घर का रूटीन शुरू हो गया। पूजाघर सहित तीनों कमरे की साफ सफाई। रसोई अलग से। कामना ने पूजा-पाठ के ओरियान से लेकर सभी घर बुहारन, लीपना तक से जुड़े कितने ही काम में लग गयी। सूर्योदय के थोड़ी देर बाद ही सास भी आ गयी और रिश्तेदार के यहां से मिले भेंटस्वरूप खाने-पीने की काफी सामान भी लेके आयी थी। जो सूखा आइटम उसे डब्बे में रख दिया गया और मिठाइयां आदि सास ने कामना को भी खाना के साथ ले लेने को बोल दिया था।

वैसे तो सास अधिकतर गुस्सा होके बोलती व कामना पर खूब गुस्सा करती। मगर कभी-कभी वह कामना से अपने मन की बात भी बताती थी। आज फिर सास देखने में प्रसन्नचिŸा मगर शरीर से शायद रिश्तेदार के यहां अधिक काम करने की वजह से थक चुकी थी और आते ही बोली थी कि पैर में बहुत दर्द है। खाना-पीना के बाद जब दोपहर में कामना सास के पास तेल लगाने के लिए गयी तो जैसे सास को अच्छा लगा और कामना से वह अपनापन से बात करने लगी...‘‘मैं रिश्तेदार के यहां इसलिए जाती हूं ताकि मैं उनकी मदद कर दूं तो वह बदले में हमें भी खुशी से कुछ भेंट दे जाय ताकि मैं घर चला सकूं। अगर ये सब मैं नहीं करूं तो कैसे जीऊं? कहने को तो मैं कई बच्चों की मां हूं मगर जिम्मेदारियां उचित तरीके से कहां कोई निभाता है। किसी महीने कोई कुछ पैसा भेजता है तो कई महीने तक कुछ भी नहीं..ऐसे में भोजन व जीवन कैसे चलेगा? तभी मैं यह सब करती हूं।’’ सास के मुंह से यह सब सुनकर कामना को लगा कि सास भी गलत नहीं। इस वृद्धावस्था में भी उन्हें अपना और अभी तो उसका भी पेट भरना पड़ रहा है। उसे पहली बार जैसे सास से लगाव सा महसूस हुआ और वह सोचने लगी कि अब सास का अधिक से अधिक ख्याल रखने की कोशिश करेगी।

इधर मोहन ने कामना को चख लिया था तो उसे फिर कामना की तलब होने लगी।
पुरुषों की यह आदत कि वह स्त्री की संगत से दूर रहेगा मगर किसी वजह से यह संगत अगर बन जाय और उसके लिए मजेदार हो तो फिर उसे, उस संगत को वह बिल्कुल छोड़ना नहीं चाहता। मोहन भी अब कामना का दिवाना बन चुका था। उसका बोल्डनेस व विशेष अंदाज जैसे उसे मोह लिया था और अब वह कामना को बार-बार पाना चाहता था। यद्यपि उसे यह भी एहसास हो गया था कि शायद वह कल ठीक से नहीं कर पाया मगर अबकी बार वह अच्छा, खूब अच्छा से करेगा..उसने मन ही मन दोहराया और फिर कामना के यहां आया। मगर यह क्या, वह चाहता था कि काश, कामना की सास घर पे ना हो तो उसे फिर अच्छे से मौका मिले मगर कामना की सास को देखकर वह उनसे बात करने लगा। बीच-बीच में वह कामना से भी कुछ-कुछ बात करने का प्रयास करता। कामना हां, हूं में जवाब देती। उस दिन उसे मौका नहीं मिला ठीक से कामना से मिल पाने का।

अगले दिन वह फिर आया कामना के यहां मगर खाली हाथ नहीं। उसकी सास धार्मिक प्रवृŸिा की थी, इसीलिए उसे पता था कि पूजा संबंधी सामान उन्हें अधिक प्रिये तो वह उसकी सास को खुश करने के लिए ढेर सारा धूप और अगरबŸाी लेकर आया था। यह सब देखकर सास खुश हो गयी और उस दिन कामना की सास ने चाय के साथ-साथ मोहन के लिए कुछ नाश्ता बनाकर देने के लिए भी बोल दिया था। मोहन को कुछ अधिक देर कामना के यहां ठहरने का समय मिल गया और कामना कैसे काम करती है, यह देखने के बहाने वह किचेन में आ गया। फिर तो उसने कामना को चूमने व छूने से खुद को रोक नहीं पाया मगर कामना ने सास की उपस्थिति का हवाला देकर उसे खुद पर नियंत्रित करने का आग्रह किया और उसे फिर सास के पास भेज दिया।

चाय-नाश्ता के बाद वह तो चला गया मगर उसके जाने के बाद कामना की सास ने कामना से कहा, ‘‘ मोहन तो बहुत कंजूस..वह अचानक बदल कैसे गया? कुछ बात हुई है क्या?’’

‘‘नहीं तो..’’ सास की बात सुन कामना मन ही मन घबरा गयी मगर ऊपर से खुद को संयत करते हुए बोली।
‘‘मैं रहूं न रहूं, अपना ध्यान रखना। पता नहीं क्या कमी इसमें कि इसकी बीवी ने इसे छोड़ दिया। अब यह खुल्ला साढ़ हो चुका है। क्या पता, दूसरों की बहू-बेटी पर नजर रखता हो। ऐसे पुरुष का भरोसा नहीं।’’

‘‘जी मां! ’’ कामना ने सास को सहमति दी और जैसे उसने कोई मन ही मन निर्णय ले लिया।

अगले दिन फिर मोहन आया और संयोगवश उस वक्त सास मंदिर गयी थी। मोहन कामना को अकेले पाकर खूब प्रसन्न हुआ और उसे अपने बाहों में लेकर चूमने लगा। अपोजिट सेक्स का स्पर्श ही ऐसा होता है कि इच्छा हो, न हो अगर तरीके से किया जाय तो मजा आने ही लगता है। कामना को भी यह स्पर्श मजा देने लगा और उसका जिस्म जैसे मोहन की बाहों में फिर डूबना चाहने लगा था। मगर नहीं। सास ने शक जाहिर कर दिया था और फिर मोहन का वह असली रूप देख चुकी थी जिसके हिसाब से कामना की इच्छाशक्ति को वह पूर्ण करने में असफल रहा था। कामना ने सोचा, ‘‘जहां रिश्ता जिस्म का, अगर संतुष्ट नहीं कर पाया तो उसको दुबारा मौका देने का भी मतलब नहीं। यह बेशक उसे बता नहीं सकती थी मगर बहाना करके मोहन के सर से अपना नशा तो दूर कर ही सकती है।’’ इसी के साथ उसने मोहन की बढ़ती पकड़ को कम करने का आग्रह किया और कहने लगी,‘‘ं मेरी सास को शक हो गया है तुम पर। वैसे हमारा-तुम्हारा रिश्ता गलत भी है कि ऐसे संबंध बनाने का हक नहीं तो तुम मुझे भूल जाओ। अब वो सब हमें नहीं करना। अपनी काकी तुम मुझे स्वीकार लो, मैं भी तुम्हारे प्रति गलत भाव नहीं रखूंगी। यहीं हमदोनों के लिए अच्छा। ’’

यह सुनते ही जैसे मोहन गरम हो गया और उसे अपने बाहों में भरकर चूमते हुए बोला ‘‘ क्या कहती हो? वो सब होने के बाद मैं तुम्हें काकी स्वीकार लूं। पागल हो गयी हो क्या। मैं तुम्हारा दिवाना हो चुका हूं। तुम्हारे लिप्स, .......और..और..उसने पीछे से ब्लाऊज का बटन खोल दिया और उसके अंदरूनी  अंगों को जहां-तहां छूते हुए बोला..‘‘मैं तुम्हें, तुम्हारे सबकुछ को प्यार करना नहीं छोड़ सकता। पहले तुमने खुद मुझे पागल बनाया और अब जब मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगने लगा तो मैं तुम्हें छोड़ दूं..यह मैं हर्गिज नहीं कर सकता। यह नाइंसाफी है और यह मैं तुम्हें करने नहीं दूंगा। वैसे भी रानी, तुम कामना हो तो ‘काम’ से क्यों भड़क रही हो?  इसी के साथ मोहन की पकड़  बढ़ती गयी और कामना के इन्कार की कोशिश के बाद भी मोहन नहीं रूका और पूरे हक के साथ वह आगे बढ़ते-बढ़ते उसका पेटीकोट उठा दिया और...और वो करना शुरू कर दिया। कामना को प्यास तो कब से थी मगर मोहन की जिद व यह प्रयास ने उसकी प्यास को और हवा देदी। जब मोहन ने उसके शरीर के अंदर खुद को प्रवेश कराया तो उसने कुछ कहा नहीं और बंद आंखों से मौन हो उसे महसूस करने लगी। उसके हर रफ्तार को, बेचैनी को व मिलने वाले आनन्द के पल-पल को..। क्रमशः

-कुलीना कुमारी, 3-12-2016


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