Sunday 25 December 2016

कामना : पार्ट-4, Desire : Part-4


 उस पल वह खुद को एक औरत समझने लगी थी और मोहन को मर्द। जहां वह प्यासी थी और मोहन को पीना ही उसका उद्देश्य।

                                                                                                                       -कुलीना कुमारी





                                                       Source of Image : Khajuraho 


जैसे-जैसे मोहन कामना के अंदर प्रवेश बढाता जा रहा था, कामना पर मोहन का प्रभाव भी बढता जा रहा था और वह अत्यधिक उत्तेजना से विभोर हो गयी तो चुप न रह सकी और मोहन का साथ देने लगी। वैसे भी भूख की तीव्रता में भोजन ही नजर आता है, और कुछ नहीं । उस पल वह खुद को एक औरत समझने लगी थी और मोहन को मर्द। जहां वह प्यासी थी और मोहन को पीना ही उसका उद्देश्य। जैसे-जैसे एक-दूसरे को पाने और पीने की चाह बढने लगी, दोनों तन-मन से मेहनत करने लगे और अंततः फल मिलने लगा।

मोहन अपने साथ कामना को उस आनंद की दुनिया में ले गया जहां से वह लौटना नहीं चाहती थी। उसने यूं कसकर मोहन को पकड़ लिया कि कभी वो दोनों अलग ही नहीं थे और अनंत काल तक यूं ही जुड़े हुए एक-दूसरे में समाए जी लेना चाहते हो। कामना को उस दिन मोहन के साथ बहुत मजा आया और आनंदमय पल की तृप्ति उसके चेहरे पर झलक रही थी। इतना ही नहीं, संपूर्णता के पल के बाद कामना उसे चूमते हुए बोली, ‘सच! मोहन, आज बहुत मजा आया और हां, यह एहसास हो गया कि तू मर्द है..तुम्हें ‘करना’ आता है।’
‘हां हां! और तुम्हें ‘करवाना’। एक ठिठोली कमरे में गुंज गयी। वैसे एक बात बताओ, उस दिन जब पहली बार किया था, पूरा मजा नहीं आया था क्या?’
‘पता नहीं! ‘कामना सच से बचना चाही।
‘पता नहीं क्यों, बोलो भी। आज की तुलना में तुम उस दिन अंत में खुश नहीं दिखी तो मुझे लग गया था कि कहीं कुछ कमी रह गयी मगर प्रिये, तुम्हारे चेहरे पर मैं तृप्ति का मजा देखना चाहता था और खुद को साबित भी करना तो भी तुम्हारे इंकार के बाद मैं खुद को आज रोक न पाया..
मोहन के इस बात पर कामना मोहन को चूम लिया और बोली, ‘सच कहूं, तुमने मेरे मना के बाद भी मेरे साथ करके बहुत अच्छा किया..नहीं तो मुझे मजा कैसे मिलता और इसका सुख भी नहीं। उसने विशेष अंग के तरफ इशारा करते हुए कहा।
‘तभी तो मैने तुम्हें नहीं छोड़ा? वैसे एक बात यह भी सुनो, तुम चीज ही ऐसी हो कि जो तुम्हें एक बार भोग ले, महसूस कर ले. वो तुम्हें नहीं भूला सकता। मेरा तो तुम्हारे प्रति सोच से ‘वो’ तैयार हो जाता है।’
मोहन की इस बात पर कामना खिलखिलाकर हंसी मगर तभी ध्यान आया कि कहीं सास न आ जाय तो बाथरूम से फ्रेश हो दोनों बारी-बारी से आ गये।
सामान्य परिस्थिति लगने के बाद कामना ने मोहन से कहा, ‘मुझे लगता है, सास को सच में शक हो गया है। अब तुम बार-बार मत आओ और यह खतरा भी कि कहीं कोई देख न ले।’
सामाजिकता, नैतिकता तब अच्छी लगती है, जब पेट भरा हो। भूखे को भोजन के अलावा कुछ और नहीं दिखता, मगर जब व्यक्ति तृप्ति हो जाय तो देश-दुनिया व औरों की चिंता होती है।
ऐसे ही तृप्ति मिलने के बाद मोहन में भी गंभीरता आ गयी थी तो उसने कहा, ‘हां, यह बात तो ठीक मगर कभी-कभी तो प्लीज।’
‘ठीक है, मगर अवसर मिला तो मैं इशारा कर दूंगी। वैसे अब नहीं।’
‘जैसी आज्ञा रानी’ और पुनः उसके होंठों पर अपना मुहर लगा मोहन चला गया।

मोहन के जाने के बाद भी आनंदायी पल कामना के मानस पटल पर छाया रहा व वह अकेले मुस्कुरा उठती। यद्यपि घर का काफी काम पड़ा हुआ था तो उसे जल्दी-जल्दी निबटाना था ताकि सास नाराज न हो और वह उसमें लग गयी। थोड़ी देर बाद सास आयी मगर साथ में कुछ खाने-पीने का सामान लेकर। वह मंदिर से गांव की ही एक रिश्तेदार लगने वाली महिला के पास चली गयी थी, उन्होने दिया था ओ सामान।
सास उनके यहां से खाकर आ गयी थी तो उस रात कुछ बनाना नहीं पड़ा। इससे एक तो रात को चूल्हा पर खाना बनाने से कामना बच गयी, और ऊपर से मोहन द्वारा दिन में मिलने वाला मजा..उसे आज का दिन सार्थक लग रहा था और आज वह मीठी नींद में मधुर यादों के साथ सोना चाहती थी। मगर सोने से पहले सास का पैर जांतना, मालिश करना रूटीन में शामिल था।

कामना जब मालिश करने गयी तो सास कुछ दुखी सी दिखी और बोली, ‘कब तक मैं ला-ला कर खिलाती रहूंगी कई महीने हो गये..किसी ने भी पैसा नहीं भेजा है। गंभीर ने भी नहीं मगर बोझ मेरे ऊपर बढ गया है।’ यह बात उन्होंने ऐसे कहा कि जैसे कामना के रहने पर होने वाला खर्चे का बोझ सास को उठाना पड़ रहा है और वह अपने बेटे गंभीर पर ही नहीं, उस पर भी उपकार कर रही है।

यह सब सुनकर कामना को अच्छा नहीं लगा। यद्यपि इसके बाद भी कुछ और बोलती रहीं जैसे..‘मेरे बेटे अगर हर महीने पैसे भेजते तो इस अवस्था में भी मुझे रिश्तेदारों के यहां जाकर काम नहीं करनी पड़ता। मुफ्त में थोड़े ही कोई किसी की मदद करता है।’ सास अपनी बात व्यक्त करते-करते सो गयी। मगर कामना का मन जरूर दुखी हो गया और अपने कमरे में आ वह अपने स्थिति व उत्तरदायित्व पर विचार करने लगी।
वह सोचने लगी, ‘मैं दिनभर सास के हिसाब से चलती हूं, सुबह 5 बजे उठना और अगर वह घर में हो तो रात से पहले लेटने का अधिकार नहीं..उनके द्वारा अढाये कार्य का अंत ही नहीं जैसे होता..उस पर मैं उनके ऊपर बोझ।’

कामना को फिर पति पर गुस्सा आया, ‘शादी के समय कितना मीठा-मीठा सपना पति ने दिखाया था मगर मिला क्या? ठीक है, बिना दहेज शादी की मगर दहेज नहीं ला पाने के ताने से नहीं बचा पाया। जब गौना होकर पहली बार ससुराल में आयी, तब भी सास दहेज स्वरूप ढेर सारा सामान नहीं ला पाने की बातें सबके सामने चीख-चीखकर कहती रहीं और पति मौन रहे। नहीं बोला कि बिना दहेज की शादी स्वेच्छा से की है, इसीलिए मेरी बीवी को बुरा मत कहो और न बुरा कहो उनके अभिभावकों को। यह सब भी सहती रही और उसके बाद पता चला कि कमाई ही इतना कम कि पति साथ नहीं रख सकते। अपनी मां के पास छोड़ दिया तो कम से कम हर महीना पैसा तो भेजते मगर वो भी नहीं। और यहां हर तरह की पीड़ा सहने के लिए मैं मजबूर। सास ऐसी कि जहां वह बहू कम, नौकर अधिक।.अपने मन से कुछ करूं, खाना बना लूं या उनके पसन्द का टेस्ट न हो तो चिल्लाना व ताना शुरु। ऐसी दकियानूसी परिवार जहाँ मन से हंसना, बोलना सब बुरा था तो कैसे नहीं आदमी चोरी करे।’ पराये पुरुष से हुए अपने रिश्ते को याद करके मन ही मन कामना दोहरायी। ‘मगर इसी के साथ उसने संकल्प लिया कि अपनी जिंदगी को बेहतर बनाने का प्रयास करेगी और अपनी पढाई पूरी करेगी व इस कार्य में जरूर उसके मायके वाले मदद करेंगे। फिर तभी ध्यान आया कि काफी दिनों से वहां से कोई आया नहीं था, वह चाहती थी, ईश्वर से मना रहीं थी कि कोई आय ताकि मायके वाले से मिलकर वह खुद को हल्का महसूस करे। कहां वह वहां रानी थी और यहां दिन-रात काम करने के बाद भी बोझ।’

वह रात कामना के लिए काफी भारी था, रोते-रोते वह कब सो गयी, पता नहीं चला। अगली सुबह फिर से पूराने कार्य में लग गयी मगर उसका मन नहीं लग रहा था। जैसे बहुत बेचैन हो और खुद के लिए अपनी दुनिया तलाश रहीं हो। कुछ होने वाला हो.मगर क्या? अचानक उसने देखा...क्रमशः




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