
सपनों का मंदिर दूर बहुत
पहुंचना है मगर पहुंचते वहीं
कंटीली राहों से भी जो गुजरे
कोशिशों से जो न मुकरे
लक्ष्य कभी भूलते नहीं
मेरी कड़वाहट को
कटुता न आंको
ये जिंदगी के अनुभवों का तकाजा
जिन्हें सच में खुशी चाहिए
वो सच से मुंह चुराया नहीं करते...
बने-बनाये रास्ते नहीं
खुद ही बनाना पड़े
सोच अलग परिस्थितियां भी
उसी के हिसाब से चलना पड़े
चाहे धारणा कुछ भी बनाए
जो जिए वहीं जानते हैं...
जो भी मिला मुकाम
मुश्किलों से मिले होंगे
मेरे इंकार की वजह होगी
ऐसे ही न नकारे होंगे
जो सोच-समझ के चलते हैं
पल-पल को अर्थ दें
सफलता पाते हैं वहीं..
-कुलीना कुमारी, 7-12-2016
 
 



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