जिस रिश्ते में सड़न हो
बदबू आती हो हमको
मैं उन रिश्तो को तोड़ देती हूं
जिनसे मिलकर खूशी न हो
टेंशन हो जाती हो हमको
मैं उनसे मिलना छोड़ देती हूं
अगर प्यार किसी को हमसे नहीं
तो नफरत के संग रहना मैं नहीं चाहूं
किसी का व्यवहार ऐसा, बार-बार खटक जाये
तो उनके संग आगे चलना मैं नहीं चाहूं
वो बुरा माने या माने भला
मैं दोस्ती वहीं उनसे तोड़ लेती हूं
रिश्ता वही सुखकर
जिनसे मिलकर हो जाए पुलकित
जो मेरे सुख-दुख को समझ पाए
जिनसे जीवन हो जाए आनन्दित
जिनसे चैन मेरा जाने लगे, डर होने लगे
मैं राह उनसे बदल लेती हूं
ढेरों दोस्तों से कुछ अच्छे दोस्त प्रिये
उन्हीं संग खुश मैं रहना चाहूं
भीड़ में भी मैं बेगाना रहंू
उससे अच्छा कुछ से मैं खुलना चाहूं
जो वादा करके मुकर जाए, सच जिनको नहीं सुहाए
मैं उनको बीच राह में भी छोड़ देती हूं
जो बुराई में लिपटे रहे
जिनको अच्छाई नहीं सुहाती है
उनकी संगत कहीं हमको भी मैला न कर दे
जिनकी सोच में भी गंदगी झलकती है
जिनके आईने में हमारा चेहरा भी विकृति दिखे
मैं उनसे मुख अपना मोड़ लेती हूं
-कुलीना कुमारी, 1/12/2014
No comments:
Post a Comment