Monday 20 March 2017

कामना-भाग-7, Kamana Part-7




Picture : Curtesy by Khajuraho



यह कहते हुए पलाश कामना को अपने बाहों में भरने की कोशिश की मगर कामना उससे पहले ही दूर छिटक गयी और बोली, ‘ भैया, क्या कह रहे और क्या चाहते हैं? मुझे या आपको जरूरत होगी तो किसी के साथ भी? 
नहीं! हम भाय-बहन और हमें अपने रिश्ते की पवित्रता नहीं भंग करनी। मैने आपको गलत दृष्टिकोण से कभी नहीं देखा और इसलिए भी जो सामाजिक रूप से गलत, वैसा रिश्ता मुझे आपसे नहीं जोड़ना।’

पलाश उससे निवेदन करता ही रहा, ‘रूको, अभी मत जाओ। न जाने कब मैं तुम्हें प्यार करने लगा, पता ही नहीं चला। मत करो इंकार। मुझे तेरी बहुत जरूरत है। थोड़ी देर तो मेरे पास रहो।’ मगर कामना उसे अनसुनी कर अपने घर चली गयी।

इसके बाद भी पलाश कामना के यहां आता-जाता रहा मगर कामना उनपर ध्यान देना बंद कर दी व उनके पास बैठना भी कि क्या पता, ओ क्या कर बैठे?

समय अपने रफ्तार से बीत रहा था मगर इसी के साथ ससुराल वालों का दुर्व्यवहार का किस्सा भी गांव में फैल रहा था। किंतु मां-पापा ने उसे बोझ नहीं समझा था तो गांव वालों की सद्भावना भी उसके साथ हो गयी। फिर कामना की बुद्धिमानी व मिलनसारिता के सब पहले से ही कायल थे। किंतु इतना काफी नहीं था। कामना के सामने पूरा भविष्य था। मा-पापा बेशक उसे कुछ कह नहीं रहे थे मगर उनकी अपनी ही रोजी-रोटी मुश्किल से चल रही थी। फिर चार छोटे भाई-बहन। आखिर वह कब तक ऐसे जीती। ऐसे में किसी ने उसे सुझाव दिया कि वह अपनी पढाई क्यों नहीं पूरी कर लेती। इससे न केवल उसका मन लगा रहेगा बल्कि भविष्य में आर्थिक स्रोत का कारण भी बन सकता है।

उसने पढाई को पुनः शुरू करने का संकल्प किया व इस कार्य में उसके मां-पापा सहयोग करने लगे। यद्यपि जहां उसका कालेज था, वह उसके गांव से दूर नजदीकी शहर में स्थित था व वहां उसके नाना-नानी रहते थे। उन्हीं के साथ रहकर वह शादी से पहले पढना शुरु किया था किंतु विज्ञान विषय व प्रोपर ट्यूशन का अभाव, वह पहली बार में असफल रह गयी थी। इस बात को लेकर नाना-नानी को दुख था और वहां रहने के दौरान किसी अन्य जाति के एक लड़की से दोस्ती की वजह से विशेषकर नाना बहुत नाराज रहने लगे थे। फिर नाना का शासन बहुत कड़क था जो कामना के खुले मन को पसंद नहीं आता था। यद्दपि कामना की उसी दोस्त के सहयोग व पहल की वजह से उसकी शादी हुई थी। इसलिए इसबार जब फिर से कामना ने पढना शुरू किया तो नानी के पास रहकर नहीं, गांव में रहकर ही पढने लगी, नोट्स का सहारा लिया व जी लगाकर मेहनत करने लगी।

इस बीच कामना अपने खुले स्वभाव की वजह से पहले से ही जानी जाती थी। गांव के लोग भी उससे बात करना पसंद करते व विभिन्न मुद्दे पर चर्चा करते। गांव के ही एक नेताजी जो एक राजनीतिक पार्टी के लिए काम करते थे व स्थानीय राजनीति में काफी एक्टिव थे, उनका भी आना-जाना कामना के यहां काफी होता था। चूंकि उनके मां-पापा किसान थे व कुछ भैस भी पालते थे तो दूध लेने वालों के प्रयोजन की वजह से भी लोगों का आनाजान स्वभाविक रूप से हो जाता था। फिर कामना की मां काफी मिलनसार थी व आतिथ्य सत्कार में उत्तम तो इसलिए भी गांव के हर तरह के लोग दूध लेने आते, मां आने वालों को चाय पिलाती। गपशप होता और कामना के आने के बाद तो इस बातचीत प्रक्रिया में वह भी जुड़ गयी थी।

एक बार ठंढ के सीजन में मां-पापा, कामना व नेताजी काका सहित सब घुर ( आलाव) ताप रहे थे। शायद धुआं होने लगा था तो कामना उसे फूककर आग जलाने की कोशिश करने लगी, मगर कैसे न कैसे कामना के गाल से काका का हाथ टच हो गया और जैसे उसके बाद से वे बदल गये। कामना को अजीब नजर से देखने लगे और उससे अलग से बात करने की कोशिश करना शुरू कर दिया।

कामना सोचा करती, ‘गाल ही तो टच हुआ था, मेरे गाल में ऐसा क्या जो उनका स्वभाव बदल गया और उसके बाद से वे मुझे शायद कुछ और नजर से देखने लगे।’

उस घटना के बाद से काका का आना बढ गया था। वे तरह-तरह की चीजें कामना के लिए लाने लगे थे। कामना इसका मतलब कुछ-कुछ समझने लगी थी मगर अब वह क्या कर सकती थी। चुप थी।
किंतु एक दिन जब मां-पापा किसी रिश्तेदार के यहां गये थे व शाम हो गयी थी, छोटे भाई-बहन सो गये थे, तब ओ आए व कामना को अकेले पाकर वे उसे बाड़ी में खींचकर लेकर चले गये। 

कामना अवाक थी मगर उनमें कामना के प्रति प्यास हावी थी, उन्होंने उसे बाहों में कस लिया और बेतहाशा उसे चूमने लगे। जैसे इस पल का उन्होंने बहुत इंतजार किया था और अब रुकना नहीं चाहते थे। 

क्रमशः..

-कुलीना कुमारी, 19-3-2017

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