Monday 24 April 2017

संकल्प/ Oath



संकल्प

रचनाकार : अनुराधा कनौजिया





पति के बिना रह रही किसी भी औरत की जिंदगी शायद पहाड़ से कम कठिन नहीं होती क्योंकि न वह शादीशुदा मानी जाती है, न कुँवारी, न ही विधवा में गिनी जाती है। ऐसी महिला के प्रति समाज अच्छा भाव नहीं रखता और उसे हीनतम होने का एहसास कराया जाता है।

कुछ इसी तरह की मुश्किलों का सामना बीना भी कर रहीं थी ! उसे अपने पति से अलग रहते हुए करीब 10 साल हो गया था, तलाक का केस भी चल रहा है। शादी के बाद सिर्फ एक साल ही तो साथ रही थी जैसे-तैसे। किंतु रोज़ का लड़ाई झगड़ा व विभिन्न परेशानियों के बीच इस एक साल में एक बेटा भी हो गया था ।
वह सोचती, ‘‘पता नहीं वो कौन लोग होते हैं जो ये कहते हैं कि बच्चे के बाद रिश्ता मजबूत हो जाता है। हो सकता है कि यह बात ठीक भी हो पर मेरे ऊपर तो नहीं सूट किया!’’ अचानक घर के शोर से उसकी तंद्रा टूटी। चूंकि इन दिनों घर में बीना की छोटी बहन की शादी की रस्मे चल रही थी। वह इन सब से दूर रहना चाहती थी पर रिश्तेदारों के चलते वह ऐसा कर नहीं पाई। हर पल बीना की आँखों में आंसू महसूस होते थे किंतु ऊपर से हंसना मजबूरी थी।

अजीब सा माहौल था बीना के लिए, हर रस्म से उसे दूर कर दिया जाता। कभी विवाहित के नाम पर तो कभी पति के बिना रह रही कह कर उसे सुहागनों में लोग गिनती ही नहीं कर रहे थे। कुछ भी कह कर विवाह की रस्मों से उसे दूर कर दिया जा रहा था। और जब कोई रस्म लड़की से करवाने की होती थी तो भी सब बोलते थे, ‘‘ये कोई कंवारी थोड़ी न है जो इससे रस्म पूरी करवा रहे हो। ऐ बीना चल तू पीछे हो जा।’’
बीना बहुत परेशान थी कि आखिर उसकी गिनती किन में आती है ? न सुहागन हैं, न कुंवारी है, न ही विधवा है ! फिर उसे लगता कि मेरे जैसी औरतो का वजूद कुछ नहीं होता क्या.. मेरा दर्द दर्द नही है क्या?
बहन की शादी की हर रस्म के साथ बीना की अपनी शादी की रस्में भी याद आती जा रही थी और वह एक साल का जीवन उसकी आँखों के सामने से गुजरने लगा व इसी के साथ उसका दर्द उसकी आँखों से जैसे छलकने को तैयार रहता पर कैसे रोक रहीं थी, ये तो वहीं जानती थी।

फिर सालों से सूखे तन पर प्यार की कोई फुहार भी तो नहीं पड़ी थी। अब तो पुरुष का छूना क्या होता है, जैसे वह ये भी भूलती जा रही थी! लग रहा था जैसे जिंदगी किसी सूखे हुए पेड़ के समान हो गई थी। यद्यपि पति के साथ भी तो तन का सुख सही से नहीं मिलता था। वह नशे की हालत में प्यार कम और बलात्कार जैसा ज्यादा लगता था। नशे की हालत में सिर्फ खुद को हल्का करने का काम ही तो करता था।

बीना सोचती जा रही थी, ‘‘मेरी ख़ुशी ,मेरे सुकून का उसने कहा कभी सोचा था। फिर भी आज उस बलात्कार रुपी तन की बुझती प्यास भी बहुत याद आ रही थी। सालों से किसी ने छुया भी तो नहीं था।’’
आज अचानक उसे उन रातों की याद आने लगी और मन बहुत परेशान होने लगा। बीना ने महसूस किया के उसके दिल में प्यार जैसा अभी भी कुछ जीवित है पर कहती किसे और कौन उसके मन को समझता, इस डर से चुप रहना ही सही था।

10 साल से अपने पापा के घर में रह रही थी बीना, नौकरी भी करने लगी थी। इन 10 सालों में ऐसा क्या था जो बीना ने नहीं सुना था। कितनी बार तन से भी टूटता हुआ खुद को महसूस किया कि चोरी से ही किसी दूसरे से रिश्ता बना लेती हूं। बहुत बार दोस्ती भी की पर तन की प्यास बुझाने की उसकी हिम्मत न हुई और दोस्ती तोड़ देती।
इन 10 सालों में कितनी बार बीना ने सोचा कि मेरा घर फिर से बस जाये पर हर बार असफल ही रही। घर के लोग अभी भी सिर्फ पहली शादी के बारे में ही सोचते रहे कि वापिस चली जाये। किसी ने नहीं सोचा कि जब 10 साल से अलग है तो अब उसी के साथ कैसे बसेगी! बेटे की ज़िम्मेदारी भी तो कभी उठाने को तैयार नहीं हुआ। अब तो बेटा भी 10 साल का हो रहा, जो खुद को अब थोडा बहुत जवान समझने लगा था। ऐसे में अपने लिए सोचना उसे और भी मुश्किल में डाल देता था।
शादी के माहौल में बीना अपनी जिंदगी के पन्ने पलटती ही जा रही थी कि तभी दीपा उसके रूम को खटखटायी। ‘‘बीना क्या मै अंदर आ जाऊ!’’
उसे देखते ही बोली, ‘‘अरे यार दीपा, आओ न ! क्या पूछकर रूम में आओगी?’’
’’नहीं यार, मुझे लगा तुम खुद में कही खोई हुई हो और मैं परेशान करने तो नहीं चली आई’’ दीपा बैठते हुए बोली।
‘‘नहीं यार ऐसा कुछ नहीं है ।’’ दीपा भी रोज़ ही शादी की रस्मो में आ रही थी पर बात आज हो रही थी ।
‘‘और बीना क्या चल रहा आज कल’’ दीपा बोली !
“कुछ नहीं यार जॉब और केस तलाक का, तुम्हे तो सब पता ही है” बीना बोली।
‘‘तो क्या तेरा अभी तक तलाक वाला केस खत्म नहीं हुआ बीना!’’
‘‘नहीं यार कहा हुआ’’
‘‘अरे पर क्यों, अब क्या प्रॉब्लम है उसमें?’’
‘‘पता नहीं यार, मेरी तो जिंदगी ही बेकार है । मैं जी क्यों रही हूं, मुझे तो ये भी नहीं पता आजतक!’’
‘‘ऐसे क्यों बोल रही है बीना, सब ठीक हो जायेगा।’’
‘‘कभी-कभी मै सोचती हूं कि वापिस उसके पास चली जाऊं ताकि सब की समस्या खत्म हो जाये, पर फिर पहले के जैसे छोड़ कर भाग गया तो ...मैं फिर से वहीं उसी मोड़ पर तो नहीं आ जाउंगी दीपा!’’कुछ रुक कर ‘‘दीपा तुझे क्या लगता है कि मुझे क्या करना चाहिए? मेरी दोस्त होने के नाते बताओगी मुझे.. तुम्हारी क्या राय है इसमें?’’
‘‘मै क्या बता सकती हूं यार बीना, अपनी जिंदगी को तुम बेहतर जानती हो तो फैसला भी तुम्हारा ही होना चाहिए। तुम्हारे घर वाले क्या बोलते है?’’

‘‘अब कुछ नहीं बोलते यार। कभी कभी-कभी कोई दूर के रिश्तेदार आते हैं तो बोलते हैं कि तुमसे कोई पूजा पाठ में गलती हुई होगी जिस का परिणाम तुम ऐसे झेल रही हो। कोई पूजा करवाओ जिस से सब ठीक हो जाये!’’

‘‘बीना ! तुम्हारे घर वाले ऐसा भी सोचते हैं।’’ दीपा एकदम चौक कर बोली, ..... “मुझे नहीं मालूम था” दीपा बोली !!
‘‘क्या करूं यार, मेरा तो दिमाग ही काम नहीं करता आजकल, बहुत बेचैनी भी होती है, ’’बीना बोली।
इसपर दीपा ने उसे बीच में टोकते हुए कहा, ‘‘किसी बेकार के चक्कर में न पड़ जाना और न पूजा-पाठ टोने-टोटके में पड़ना, इस सबसे कुछ लाभ नहीं। फिर तू तो पढ़ी लिखी आजकल की लड़की है। वैसे भी भगवान दिल में होता है। बीना, ये तेरी जिंदगी है और अब तो तुम जॉब भी करती हो। जब शादी के शुरू में कोई समझौता नहीं किया, तब समझौता करती तो कुछ और बात होती पर अब 10 साल बाद मेरे ख्याल से ये बेवकूफी ही होगी। जो सम्मान तुम्हे पहले नहीं मिला, क्या इतने सालों बाद तुम्हे वहां पर कोई सम्मान मिलेगा... क्या तुम्हे ऐसा लगता है ??? माफ़ करना बीना ..... ! तुम्हारी जगह अगर मै होती तो अब जाने के बारे में सोचती भी नहीं, वैसे भी घर में औरों को खटकती हो, इस का ये मलतब नहीं कि तुम्हें अपने बारे में सोचने का हक़ नहीं है। एक बात और, जिंदगी जीना इंसान कभी भी शुरू कर सकता है जब जागो तभी सवेरा। लोगो का काम बोलना, उन्हें बोलने दो मगर करो वहीं जो तुमको अच्छा लगे।’’

इसके बाद भी दीपा रूकी नहीं, बोलती जा रहीं थी, ‘‘बीना! तुम्हारी जगह अगर ये समस्या तुम्हारे भाई की होती तो लोगो की सोच ऐसी नहीं होती। तब लोग जरुर दूसरी शादी की राय देते और 10 साल का बेटा भी कोई समस्या नही होती। अभी भी तुम अपनी जिंदगी को फिर से शुरू कर सकती हो। तलाक की सोच के साथ अब एक साथ रहना पागलपन के सिवा कुछ भी नहीं है, बाकि तुम खुद समझदार हो।’’

इतना कहते हुए दीपा अपने घर जाने के लिए तैयार हो जाती है और बोलती है, ‘‘शांत मन से अपने लिए और अपने बेटे के लिए सिर्फ सोचो, किसी और के लिए सोचने की जरूरत नहीं है ! फिर से बसना कोई गलत भी नहीं है। सच्चाई के साथ फिर एक नई शुरुआत की जा सकती है यार। वैसे मैं जानती हूं, तेरे घर वालो को मेरी सोच पसंद नही आएगी पर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। जिंदगी में हर किसी को किसी न किसी के साथ की जरूरत होती है। अगर फिर से बसना ही है तो कोई नया जीवन साथी भी चुना जा सकता है। जरुरी नहीं कि जिंदगी ने एक बार धोखा दिया तो फिर से वहीं सब होगा। हां! अब की बार सिर्फ जोश में नहीं होश से भी काम लेना।’’

तभी दीपा को बीना द्वारा बतायी बेचैनी की बात याद आयी और वह झट उसका मतलब समझते हुए बोली, ‘‘ तेरी बेचैनी का मतलब मैं जान गयी। तन और मन की प्यास बुझाने की जरूरत सब को होती है। जो कहे कि कभी नहीं लगती तो उसे झूठा ही समझना। ऐसे भी लोग होते हैं जो 8-10 घंटे नहीं रह पाते बिना प्यास बुझाये। तुझे तो 10 साल हो गये। 7 साल बाद तो गुमशुदा को भी कानून मृत घोषित कर देता है। वैसे भी अब कौन-सा तुम दोनों के दिल में एक दूसरे के लिए प्यार है जिसे खोने का कोई नया दुःख होगा। हाँ अगर प्यार होता तो अलग बात थी। पर ऐसा तो कुछ है ही नहीं, उस ने भी तो कोई कोशिश नहीं की अपना घर बसाने की। बेटा तक का हाल कभी नहीं पूछा तुमसे उसने ....। अब पति की यादों पर मिट्टी डाल। सिर्फ अपने बेटे का दिल जीत, उसके दिल में तेरे लिए कोई गलत सोच नहीं होनी चाहिए। तुमने उसे अकेले पाला है यार .... चल अब मै चलती हूं, शादी वाले दिन मिलंेगे ! दीपा चली गई और बहुत कुछ नया सोचने व करने के लिए बीना को छोड़ गयी।
देर तो हो चुकी थी मगर बीना के मन का धुंध हट चुका था और वह खुद को एक नये संकल्प से भर लिया था। उसने सोच लिया था कि अब चुप्पी नहीं, अपने हक के लिए मैं आवाज उठाऊंगी और अपने जीवन को बेहतर से बेहतर बनाने की कोशिश करूंगी..।

‘महिला अधिकार अभियान’ के अप्रैल 2017 अंक में प्रकाशित..

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