Thursday 22 June 2017

कामना भाग-8 / Kamna part-8

कामना भाग-8



अनुनय द्वारा चूमने व बाहों में लेने से कामना का जिस्म पिघलता जा रहा था। फिर शरीर इतने दिनों से प्यासा जो था, वह चाहता था कि कोई ठीक से उसे करे। ऊपर से अनुनय उसका चाहने वाला, कामना को उस पल लग रहा था कि कोई मूर्ख ही होगा जो अपने चाहने वाले के साथ सोना न चाहे। 
-कुलीना कुमारी, 22-6-2017


कामना इस अप्रत्याशित व्यवहार से सुन्न सी हो गयी। वह समझ ही नहीं पा रही थी कि ये क्या हो रहा और क्यों हो रहा? उसे याद आयी कि उसने अपने व्यवहार से ऐसा कभी नहीं जताया कि मुझे अमुक काका की चाह है, फिर यह क्यों? मगर इसी सोच के साथ उसे एहसास होने लगा कि अब भी अगर विरोध नहीं करेगी तो क्या सबकुछ होने के बाद करेगी? जब मुझे रिश्ते की मर्यादा नहीं तोड़ना तो इसके लिए मजबूती से मुझे खड़ा भी होना पड़ेगा और जताना होगा कि ऐसा व्यवहार मुझे नहीं पसंद। ठीक है कि मेरे शरीर को भी प्यार की जरुरत मगर मुझे सोना होगा तो पति के साथ सोऊंगी, पति नहीं तो अपने प्रेमी के साथ मगर काका के साथ...हर्गिज नहीं और इस सोच के साथ ही वह काका के बढते हाथ को रुकने का इशारा किया।

वे कामना का ऐसा प्रत्युत्तर देख जैसे थम से गये और पूछा, ‘‘क्यों? मैं ठीक से नहीं कर पा रहा हूं क्या, तुम्हें किस तरह का पसंद है, वैसे ही करूंगा.. बताओ और खोलो भी।’’ और वे कामना के वक्ष पर कपड़े के ऊपर से ही अपना हाथ रख उसपर अधिकार जताते हुए बोला।

कामना बोली, ‘‘प्लीज, आगे मत बढिये, आप मेरे काका और इसलिए अपने बीच ऐसा व्यवहार ठीक नहीं तो दूर रहिये मेरे से।’’

‘‘क्या कह रही हो, मैं तो तुमसे प्यार करता हूं। अगर रिश्ते में मैं तेरा काका लगता हूं तो इसमें मेरा दोष तो नहीं। मैं क्या करूं? सच कहता हूं, मैं आचरण से कभी बुरा नहीं रहा। सालों से मैं भतीजी के नजर से ही तुम्हें देखता था मगर जब से तुम्हारा गाल घूर तापते वक्त टच हुआ, इस गाल ने मुझे पागल बना दिया। इतनी मादकता, इतना नशा स्पर्श में मैने कभी महसूस नहीं किया था। इसके बाद से ही मेरे अंदर तुम्हें पाने की भूख जैसे नस-नस में बैठ गयी। अब मत रोको मुझे। पूरा तो करने दो। जब गाल में इतनी मादकता तो बाकी जिस्म में क्या होगा तो...। ’’ और यह कहते हुए उसके काका कामना को और पास खींचने की कोशिश करने लगे।

किंतु कामना ने इसका विरोध किया व बोली, ‘‘बस भी कीजिए। हमदोनों के बीच रिश्ता नहीं हो सकता। काकी है और आपके बच्चे भी, कभी उन्हें पता चलेगा तो कैसा लगेगा, सोचा है? और मेरे मां-पापा को पता चलेगा तो मैं अपनी नजर से ही गिर नहीं जाऊंगी क्या! अगर दोषी गाल है तो उससे खेल चुके हैं । प्लीज, अब मुझे बख्श दीजिए।’’
‘‘अरे, अरे! कहां जा रही हो, किसी को पता नहीं चलेगा। हो जाने दो ना बस एक बार।’’ और यह कहते हुए कामना के काका ने उसे रोकने की कोशिश की।

किंतु कामना काका के साथ वैसा कुछ नहीं चाहती थी तो बोली, ‘‘मेरा मन नहीं, क्या आप जबरदस्ती करेंगे?’’
‘‘नहीं! हर्गिज नहीं, तुमसे सच में प्यार करता हूं। जबरदस्तीकर अपने नजर में गिरना नहीं चाहता। तुम जाना चाहती हो तो जाओ, जब भी तेरा मन हो, मुझे इशारा कर देना!’’ और उसके काका ने उसे छोड़ दिया। वह बाड़ी से अपने घर चली गयी और उसके काका अपने घर।

उस रात कामना को बड़ी मुश्किल से नींद आई। बेशक काका को साथ देने से उसने मना कर दिया था मगर पुरुष स्पर्श ने उसके अंदर इच्छा पैदा कर दी थी और उसे पति की याद आने लगी थी। याद तो मोहन और गोलू की भी आ रही था मगर वह तो बीती बातें थी और पति ने भी तो जैसे उसे भूला दिया था।

वह सोच रही थी, ‘‘मेरे साथ कितना कुछ दुर्व्यवहार ससुराल में हुआ, न वे आए ही और न उनके कुछ संवेदना के स्वर ही सुनाई पड़े। उल्टे दिल्ली में मेरे एक दूर के रिश्तेदार के साथ रहने लगे, व यह बात गांव में रहने वाली उस रिश्तेदार की मां को नापसंद था। इसलिए कितना बुरा-बुरा उसे पति के कारण उसे सुनाई। यद्यपि पति से संपर्क तो नहीं हो रहा था किंतु कामना के मन में पति के प्रति गुस्सा जरूर बढ रहा था।

फिर वह क्या करे? कब से शरीर उसका प्यासा था और उसके शरीर को किसी मर्द की गर्मी मिली नहीं थी। मायके में दो मिले भी तो वे जो उसके रिश्तेदार थे। अब वह खुद को अकेला महसूस कर रहीं थी और कोई ऐसा उसे चाहिए था जो उसे समझ सके, उसे प्यार कर सके मगर कौन?

हम मनुष्य का स्वभाव, अकेलापन में उसे वह सबसे ज्यादा याद आता है जो उसका चाहने वाला भी हो और उपलब्ध भी। 
शादी से पहले अपने गांव में उसे तीन लोग अच्छे लगते थे..एक उसके ही टोल का शहरी बाबू, दूर के रिश्ते में वह भी भाई ही लगता था मगर वह शहर में रहता था और जब वह पहली बार उसे देखी थी तो मन ही मन पसंद करने लगी थी, पसंद तो वह भी करने लगा था। घंटों धूप में खड़े रहते थे सिर्फ एक-दूजे को दीदार के लिए। एक बार उसने कामना को एक पार्कर पेन गिफ्ट में दिया था जिसमें लिखा था...‘आई लाइक यू एंड लाईक मेक्स लव’’ वर्षाे बाद भी कामना को यह बात याद थी और याद था वह अपना चाहने वाला भी। उसका घर तो कामना के मायके के बिल्कुल पास था मगर वह नहीं दिख रहा था, मतलब वह गांव में था नहीं।

दूसरा दूसरे टोल का एक लड़का, वह पता नहीं, कब कैसे कामना का दीवाना बन गया था किंतु कामना उससे एक-दो बार ही मिली थी और वह भी समूह में। वह कामना से शादी भी करना चाहता था। किंतु गांव में शादी होती नहीं और कामना को पता चला कि अगर गांव वालों को इस बात की  हवा लगती तो लोग उसे पीट देते। इसलिए वह अपने तरफ से इस बात को बढ़ायी नहीं मगर बात कुछ हद तक बढ़ गयी थी। कामना शादी से पहले जिस स्कूल में पढ़ाती थी, उसके प्रिंसपल ने उस लड़के के दिवानगी की वजह से ही कामना को स्कूल में पढ़ाने से मना कर दिया था ताकि वह कोई बहाना बना कामना से मिलने न आ जाय।

मगर स्कूल के मालिक को जब पता चला कि उस लड़के की दीवानगी की वजह से कामना को स्कूल आने से मना कर दिया गया है तो उसने प्रिंसिपल को डांटा और कामना को स्कूल आने के लिए बुलावा भेजा। कामना को आज भी वह पल याद जब एक विद्यार्थी उसके घर पर यह संवाद लेकर आया था कि स्कूल के मालिक ने कामना को पुनः नौकरी पर रख लिया है और पढाने के लिए आने को कहा है। कामना गयी और पुनः उस स्कूल में पढाने लगी मगर स्कूल के मालिक का यह व्यवहार उसके मन प्राण पर जैसे अंकित हो गया। उसे लगा कि स्कूल का मालिक उसे कितना मानता है कि गांव-समाज के डर को उड़ा कामना के साथ खड़ा हो गया।

हिम्मतगर मर्द हर महिला को पसंद और मन ही मन उसके बाद से कामना के मन में स्कूल मालिक का स्थान रिजर्व हो गया। उसे ध्यान आया, उन दिनों वह भी तो कामना को पसंद करता था, कभी बेबात का भी मुस्कुराना और जब-तब यह एहसास कराना कि कभी जरूरत हो तो याद करना और.. और..। किंतु बात बातचीत तक ही रहीं, न उन्होंने खुलकर कुछ कहा और गांव की परिस्थतियों में कामना के मन में भी यह शामिल नहीं हुआ कि बिना वैवाहिक उद्देश्य के शारीरिक सुख के लिए एक-दूसरे का साथ लिया जा सकता है। मगर वैवाहिक संबंध के बाद मिले शारीरिक सुख ने नर-नारी के बीच का असली मतलब कामना को समझा दिया था जिसके तहत शादी अलग। मगर एक-दूसरे का साथ लेकर रिलेशनशिप का मजा लेना बिल्कुल अलग।

फिर मायके के इस अकलेपान में पुराने संबंध को पुनर्ताजा करने के ख्याल में उसे सबसे अधिक स्कूल का वह मालिक अनुनय ही याद आ रहा था। हो रही थी चाहत कि कभी उसने बहुत मदद की थी। ऐसे हिम्मतगर पुरुष का प्यार व सेक्स भी बहुत अलग व खास होगा। काश वह मिल जाता..मिलता मौका उसके साथ का..एकांत का और..और..और।

 यहीं सोचते-सोचते वह सो गयी। अगले दिन उठी व जरूरी काम निबटाया। दोपहर होने से पहले ही उसके मां-पापा आ गये। फिर उसे अपने पढने व अपने लिए सोचने हेतु कुछ अधिक समय मिल गया। खाना बनाने व घरेलू काम से भी छुट्टी जो मिल गयी। उसके बाद के कुछ दिन तो ऐसे ही गुजर गये मगर स्कूल का वह मालिक उसके मन पर अपना प्रभाव बढाता ही रहा।

अचानक मधुबनी की एक मित्र के जरिये उसे सूचना मिली कि बारहवीं के पेपर का डेटशीट निकल गया है। कामना खुद की पढाई में ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी। तभी उसे लगा कि कुछ नोट्स खरीदने कालेज जाकर जरूरी अपडेट्स लेलूं, यह सब सोचकर वह मधुबनी आने के लिए विदा हुई थी। अभी रास्ते में ही थी कि एक बाईक उसके सामने रुकी। गौर से देखा तो वहीं चिरपरिचित मुस्कान.. जैसे जता रहा हो कि मैं तुम्हारा हूं..सदा से तुम्हें चाहने वाला।
कामना देखकर प्रत्युत्तर में मुस्कुरा उठी तो वे पूछ बैठे ‘‘कैसी हो, सबठीक है ना?’’ कामना का मन तो हुआ कि बोल दूं ‘‘नहीं ठीक होगा तो आप ठीक कर देंगे क्या?’’ मगर नहीं बोली और प्रत्युत्तर में कहा, ‘‘सब ठीक, आप अपना बताइए!’’
‘‘आप अपना बताइए’’ कामना यहीं सवाल दुहरायी।

‘‘मेरा भी पहले जैसा। वैसे तुम कहां जा रही हो?’’

‘‘मधुबनी.. कुछ नोट्स खरीदना व कालेज भी जाना।’’

‘‘मैं भी उधर ही जा रहा हूं। चलो ना मेरे साथ, मैं छोड़ दूंगा।’’ अनुनय ने यह बात इतने प्यार से कही कि कामना मना न कर सकीं। फिर कामना कुछ दिन से उसे याद भी कर रहीं थी। उसे लगा कि ईश्वर ने उसकी मन की बात सुन ली और उसे भेज दिया। शायद दोनों ही एक-दूसरे का साथ चाह रहे थे और फायनली कामना अनुनय के साथ बाइक पर बैठ गयी और गाड़ी लक्ष्य के तरफ बढ़ने लगी।

यद्यपि लक्ष्य तो था कामना का कॉलेज पहुंचना और उसके साथ ही मधुबनी के बड़े बुक सेलर के पास पहुँच जरूरी नोट्स खरीदना किंतु अनुनय के साथ ने एक और लक्ष्य जोड़ दिया था रसभरा सफर।

काफी दिनों के बाद कामना एक ऐसे पुरुष के साथ बैठी थी जिसे वह बहुत याद कर रहीं थी। शायद इतना कि उसके रंग में डूबने की तमन्ना हिलोरे ले रहीं थी। जैसे ही उबर खाबर रास्ता आने पर जर्किंग में अनुनय से वह टकराती, अजीब से रोमांच से उसका मन भर उठता। वह कोशिश करती कि टच न हो मगर अनुनय का अचानक रास्ता में मिलना व मधुबनी तक के लिए ही लिफ्ट लेना जैसे दोनों को आपस में तीव्रता से जोड़ता जा रहा था।

फिर वर्तमान परिस्थितियां जैसे उसे ईश्वर की मर्जी का संकेत देता हुआ लगा और उन पलों को वह पूरे मन में बसा लेना चाहती थी। रंग अनुनय का भी बदलता जा रहा था क्योंकि वह स्वयं बहुत पहले से कामना को चाहता था, उसने इशारों से कई बार जताया भी पहले था मगर उसके शरीर की मादकता का अनुभव उसे पहली बार हो रहा था और उसमें अजीब सी प्यास व बेचौनी भरने लगी थी।

ऐसे ही चलते-चलते जब जर्किंग में पुनः कामना के शरीर का अग्रभाग अनुनय से टकराया तो वह अजीब से रोमांच से भर गया और बोल उठा, ‘‘कामना तुम बहुत सुंदर हो और उसपर तुम्हारे शरीर की मादकता जैसे अच्छे-भले पुरुष की भी जान लेकर छोड़ेगी।’’

‘‘मगर मुझे जान लेने में दिलचस्पी नहीं। अलग बात की मूड हो तो इस्तेमाल कर छोड़ देने में भरोसा ताकि दुबारा उपयोग किया जा सकें।’’ कामना ने खिलखिलाते हुए कहा।

शायद इतने खुलापन की उम्मीद अनुनय को नहीं थी, उसकी हिम्मत बढी, उसने जरा गाड़ी को धीमे किया और पीछे मुड़कर कामना के हाथ को पकड़ते हुए अपने कमर पर ले आया और बोला, ‘‘तो इस्तेमाल करो ना..हर रूप के लिए मैं तैयार!’’
अनुनय का यह रंग देख वह शरमा गयी और बोली, ‘‘रहने दीजिए जी, मैं तो ऐसे ही मजाक कर रहीं थी।’’

‘‘मगर मैं मजाक नहीं कर रहा था। तुम्हें शायद मालूम नहीं मगर मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, आज से नहीं, तब से जब पहली बार तुम्हें अपने स्कूल में टीचर के बतौर तुम्हें काम करते देखा। तुम्हारी सरलता, बच्चों को पढाने व अभिव्यक्ति का नया ढंग जैसे मुझे मोह लिया था। तुम्हें शायद मालूम नहीं मगर मुझे इस पल का इंतजार लंबे समय से था। मैं चाहता था कि कम से कम एक बार ऐसा पल आए जब तुम कहो, मैं सुनूं। मैं कहूं, तुम सुनो और और..और बहुत कुछ।’’

‘‘मगर यह तो गलत है ना..हम दोनों ही शादीशुदा, ऊपर से एक गांव के भी। लोग क्या सोचेंगे?’’

‘‘लोगों ने कब प्यार को समझा है जो हमें या तुम्हें समझ पाएंगे।
इसलिए हर व्यक्ति को अपनी खुशियाँ खुद ही ढूंढनी पड़ती है। फिर तुम हो ही ऐसी कि तुम्हारे लिए तो दुनिया से भी लड़ लूं, तभी तो सबके विरोध के बावजूद मैंने तुम्हें चुना था।’’ अनुनय ने विश्वास के साथ कहा।

 ‘‘मतलब।’’

‘‘याद तो है ना तुम्हें कि कैसे सबके विरोध के बावजूद मैंने तुम्हें नौकरी पर रखी, जाने नहीं दिया, वह मेरा तुम्हारे प्रति प्यार ही तो था।’’

‘‘ओह सच, तभी तो आप मुझे सबसे हिम्मतगर लगे और बस गये मेरे मन में।’’ कामना के मुंह से अचानक निकल गया।

‘‘क्या.. क्या बोली? क्या मैं भी तुम्हारे मन में..तुम पहले कभी क्यों नहीं बतायी? कोई बात नहीं! जब जागो तभी सबेरा। मैं मैं आज बहुत खुश कि मेरा प्यार एक तरफा नहीं।''
इसी के साथ अनुनय की और हिम्मत बढी व पुनः उसने कामना को अपने तरफ खींचकर पास-पास बैठा लिया। यह हक व अपनापन कामना में भी इच्छा बढाती जा रहीं थी।’’ और वह समर्पित सी होती गयी।

ऐसे ही और भी कुछ-कुछ बात करते-करते कामना को पता ही नहीं चला कि कब वह कॉलेज पहुंच गयी।
उसका जोश व रोमांचक साथ टूटने का एहसास तब हुआ जब अनुनय ने कहा, ‘‘अब कॉलेज आनेवाला, अपने टीचर से मिलकर आ जाओ। मैं इसी सामने वाले किताब की दूकान पर इंतजार कर रहा हूं।’’

‘‘अरे, आप और क्यों कष्ट कर रहे, मैं चली आऊंगी वापस।’’

‘‘नहीं नहीं मैं ही छोड़ दूंगा। तुम जाओ और टीचर से मिलकर आ जाओ।’’

और ऐसा ही हुआ। कामना जब टीचर से मिल जरूरी जानकारी प्राप्त कर आई तो देखा अब तक अनुनय उसका इंतजार कर रहा था। उसे कुछ नोट्स भी लेने थे, जिसका पैसा अनुनय ने कामना को देने नहीं दिया। इसके अतिरिक्त भी उसने कुछ और सहयोग राशि यह कहते हुए दे दिया कि ‘‘शायद तुम्हें इसकी जरूरत पड़े।’’

कामना लेने से मना कर रही थी तो उसने कह दिया, ‘‘यह मैं खुशी से तुम्हें दे रहा हूं,। तुम बदले में अपना 'कुछ' खुशी से दे देना। हिसाब बराबर।’’ कामना के आंखों में आंखे डाल अनुनय ने यह बात इतने प्यार व अधिकार से कही कि कामना का दिल धड़क उठा मगर इस अंदाज पर दोनों ही खिलखिलाकर हंस उठे।

इधर का काम निबट जाने के बाद अनुनय कामना को बाईक पर बैठाकर आगे बढ़ने लगा मगर यह क्या, वह मधुबनी में ही एक जगह रुक गया। कामना ने पूछा, ‘‘यह क्या है? हम यहाँ क्यों रुके हैं?’’
‘‘हम थक गये हैं ना और भूखे भी। यह हमारे रुकने का टेम्परोरी स्थान। यहाँ कुछ खाते-पीते हैं । फिर चलेंगे। उतरो ना! ’’

कामना को समझ में नहीं आया कि क्या करूं न करूं मगर यह सच कि वह भी थक चुकी थी और थी भूखी भी। वह अनुनय के साथ-साथ ऊपर आ गयी।

ऊपर पहुँचकर पता चला कि वह एक होटल था और उसके अंदर के एक कमरे में अनुनय कामना को ले आया। डबल बेड सहित सभी आवश्यक सुविधा का सामान उस कमरे में उपलब्ध था।

कमरे में पहुंचते ही अनुनय बोला, ‘‘तुम फ्रेश हो लो, मैं कुछ खाने का आर्डर देता हूं। फिर पूछा, ‘‘ननवेज खाती हो ना, वहीं मंगा लेता हूं।’’
थोड़ी देर में खाना आया और दोनों ने एक साथ खाया और काफी सारी बातें भी। तब तक दोनों इतना हिलमिल गये थे जैसे वर्षों का साथ हो।

जोशीला भोजन के बाद पेट की भूख खत्म होते ही जिस्म की भूख हावी होने लगी थी। फिर हावी हो भी कैसे नहीं, एकांत भी था और अनुनय के लिए कामना जैसी सुंदर व नवीन विचारों वाली यौवना भी। ऐसे ही कामना के लिए अनुनय जो न केवल शरीर से मजबूत दिख रहा था बल्कि उसका टूटकर चाहने वाला भी था। उसकी हिम्मत की कायल तो वह कुंवारी से थी। इतने पास का मौका पहली बार मिल रहा था।
यद्यपि खाना खत्म होने के बाद कामना बोली, ‘‘ अब घर चलते हैं मगर अनुनय बोला, ‘‘जरा और ठहरो और फिर..’’
वह कामना के पास आ गया और उसे चूमते हुए बोला, ‘मैं तुम्हें पूरी तरह देखना चाहता हूं। बहुत सपना तुम्हारा देखा। वर्षों बाद यह मौका मिला है। मुझे प्यार करने दो ना। और हां तुम भी तो मुझसे करती हो प्यार, कहीं थी ना कि तेरे मन में मैं बसा। फिर देर किस बात की?आज अभी हम एक हो जाते हैं।’

अनुनय द्वारा चूमने व बाहों में लेने से कामना का जिस्म पिघलता जा रहा था। फिर शरीर इतने दिनों से प्यासा जो था, वह चाहता था कि कोई ठीक से उसे करे। ऊपर से अनुनय उसका चाहने वाला, कामना को उस पल लग रहा था कि कोई मूर्ख ही होगा जो अपने चाहने वाले के साथ सोना न चाहे। खुद को पढते हुए उसने पाया कि मन तो दिलवर की बाहों में आजीवन बिताना चाहता है। उसे विश्वास हो आया कि आजीवन नहीं तो कुछ पल ही सही, इस पल का आनंद कामना भी लेना चाहती थी। मगर डर था कि किसी को पता चल गया तो..वह बोल उठी, ‘‘वह तो ठीक कि आप भी मुझे अच्छे लगते हैं लेकिन मैं नहीं चाहती कि ऐसा करूं कि समाज में अपनी बदनामी हो।’’

‘‘देखो कामना, मैंने बुक स्टॉल पर कहा था ना कि तुम कुछ देना चाहो तो वो चीज देना जो मुझे खुशी दे सकें और आज मैं तुमसे तुम्हें मांग रहा हूं। मना मत करो। जहां तक बदनामी की बात तो इस बंद कमरे के बारे में किसी को पता नहीं चलेगा। ऐसे होटल व कमरे बनाए ही इसलिए जाते हैं कि आदमी अपनी इच्छा व खुशी से मनचाहे व्यक्ति के साथ कुछ पल सुकून से बिता सकें। तुम निश्चिंत रहो। इसका ध्यान रखना मेरी जिम्मेदारी।’’
 अनुनय द्वारा कामना को छूते रहने से पुरुषोचित आवश्यकता बढने लगी थी और वह मर्द के पूरे रूप में कामना के साथ आना चाहता था। इसलिए वह बेकरारी के साथ कामना को मनाने की कोशिश की।

सेक्स की इच्छाएं कामना को भी होने लगी थी, बावजूद वह होश में थी। उसने एक और प्रश्न किया, ‘‘अगर इस प्रसंग का किसी को पता चला और मेरा भविष्य खतरे में आया तो आप अपना लेंगे मुझे क्या।’’

‘‘बिल्कुल! जब तुम जैसी रुपवती हो तो कोई अनजान भी अपनाना चाहे। मैं तो तुम्हारा दिवाना हूं।’’

इस वादा के साथ ही कामना का मन निश्चिंत हो आया और उसने समर्पण हेतु शरीर को खुला छोड़ दिया। अनुनय यहीं चाहता था। अब उसने देर नहीं की और अब तक जो वह कामना को ऊपर से सिर्फ छू रहा था, उसने समीज के अंदर हाथ डाल दिया। उसका स्पर्श जैसे उसमें नशा बढाता जा रहा था। अब उसने देर नहीं की और समीज निकाल दिया। उसका गोल-गोल वक्ष देख वह बहुत खुश हुआ और उसे पीने लगा। कामना इस पल में खोने होने लगी। वह खुश थी कि इस शरीर को कोई प्यार करने वाला तो है। थोड़ी देर तो वह उसके गले व वक्ष से खेलता रहा मगर और.. और.. की इच्छा हावी होते ही वह कमर के नीचे कुछ टटोलने लगा। दोनों ही मस्त हो रहे थे और एक-दूसरे के देह पर वस्त्र जैसे खटक रहा था। अनुनय ने पहल की और अपने साथ-साथ कामना का अंतर्वस्त्र भी निकाल दिया। अब उसका अधिक ध्यान नीचे हो आया था और वह खुद को उस पर फोकस करने लगा। कभी छूता, कभी चूमता तो कभी कुछ और। जैसे जैसे कामना मस्त होती जा रही थी, वह अपनी क्रियाएँ दोहराता जा रहा था। कुछ देर बाद कामना अत्यधिक उत्तेजित हो आई और वह अनुनय के पुरुषांग से खेलने लगी। जब उससे और रहा नहीं गया तो उसने अनुनय से कहा, ‘‘अब करो भी..बहुत आग है..बुझाओ भी। फिर असली खेल शुरु हुआ और स्त्री पुरुष अपने स्वभाविक अवस्था में आ गये। वह पुरुषत्व का मजा देता जा रहा था और कामना स्त्रीत्व का। कामना चाहती थी कि यह खेल खत्म न हो मगर आधा घंटा होते होते अनुनय थक चुका था। किंतु कामना के अंदर मोर एंड मोर की इच्छा बन रहीं थी।
क्रमशः..

foto: Curtesy by Ajanta

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