Tuesday 10 October 2017

कामना पार्ट-9/Kamna Part-9


अनुनय इस सम्पूर्ण क्रिया के बाद तो थक चुका था और तृप्ति भी उसके चेहरे पर झलक रही थी। किंतु कामना की आग अभी तक बुझी नहीं थी। उसके अंदर इच्छा थी कि और सेक्स हो मेरे साथ मगर कैसे?

Art of Amrita Shergill


अनुनय तो थक चुका था और ऐसे निश्चिंत सा पड़ा हुआ था जिसमें पुरुष का गिर जाना ही तृप्त माना जाता हो। मगर कामना और उसके अनुभव उसे सीखा चुके थे कि जो मिल रहा और जो मिल सकता है, उसके लिए पहल करना ही लाभदायक । चुप्पी समस्या का हल नहीं । और जो सामाजिक परिस्थिति है कि महिला प्रायः पहल नहीं करती, सेक्स के दौरान भी अधिक सपोर्ट नहीं करती, तभी तो पुरुष में यह नासमझी कि पुरुष का हो जाना ही चरमोत्कर्ष और अनुनय भी शायद अभी तक इसी धारणा का शिकार था। हो सकता है, उसकी पत्नी भी उससे इससे अधिक की चाह की अभिव्यक्ति न की हो तो उसे यह कैसे मालूम होता कि महिला की भी संतुष्टि की जरूरत !

मगर यह मौका वह गंवाना नहीं चाहती थी क्योंकि उसके अंदर बहुत प्यास जग गयी थी। फिर कामना ने सोचा, ‘चाहे एक बार सेक्स करे या दो बार, अगर सेक्स दूसरे संग करना बुरा है तो सजा दोनों का समान ही होगा, फिर क्यों न दूसरी बार की भी कोशिश करे, क्या पता, दूसरी बार अधिक मजा मिल जाय। फिर शर्म तो एक बार वस्त्र उतारने में मगर जब यह उतर ही गया तो खुले बदन का अधिक से अधिक मजा मिलना ही चाहिए मुझे और यह सोच आते ही वह मुस्कुरा उठी। बाथरूम से फ्रेश होकर आई तो उसका आहट पा अनुनय बोला, ‘चलने की तैयारी करना है क्या या कुछ और खाओगी, पियोगी, तब चलेंगे?

‘‘बिल्कुल, जब तुम खिलाने वाले हो तो जीभरकर तो खाना ही चाहते हैं मगर फिलहाल तुम जूस मंगा लो।
अनुनय जूस आर्डर किया व साथ में कुछ हल्का-फुल्का खाने का सामान भी। वेटर के आने तक वह भी फ्रेश होकर आ चुका था।

कामना पहले से ही फ्रेश होकर अपने शरीर को चादर से ढकी हुई थी।
दोनों जूस साथ पीने लगे व हल्का-फुल्का लेते भी रहे। इससे अनुनय में पुनः जोश आता गया और कामना से पूछा, ‘‘बताओ भी कैसा लगा, मजा तो आया न? मुझे तो बहुत मजा आया, इतने सालों से बीवी को 'कर' रहा हूं मगर इतना मजा उसके साथ कभी नहीं आया।’’

कामना समझ गयी कि अब पुनः उसकी ताकत लौटने लगी है, जरा मेहनत की जाय तो शायद दुबारा के लिए वह तैयार हो जाएगा। कामना अपना हाथ उसके होंठ पर रखती हुई बोली, ‘‘जब तुम्हारे जैसा सेक्स पार्टनर हो तो मजा कैसे नहीं आएगा!’’ और यह कहते हुए कामना उसे चूमने लगी। इससे अनुनय के अंदर पुनः उत्साह भरने लगा और प्रत्युत्तर में वह आगे बढकर कामना के वक्ष से खेलने लगा।

कामना समझने लगी कि इसमें जोश बढने लगा है मगर और तैयार करने की जरूरत और वह आगे बढकर उसके संवेदनशील अंग पर अपना हाथ रख दिया। वह अभी तक शांत था मगर उसको वह हाथों से तैयार करने लगी। धीरे-धीरे अनुनय में जोश बढता जा रहा था मगर और बढाने के चक्कर में कामना बोली, ‘‘आपको पता, एक बार सेक्स तो सभी करते हैं मगर जो दो बार कर सके, वहीं ताकतवर माना जाता है।’’

‘‘ऐसा क्या मगर यह बात तुमसे किसने कहा, कोई दो बार तेरे साथ किया है क्या जो इतना जानती हो।’’
‘‘समझिये भी, मेरे पति मेरे साथ ज्यादातर दो बार करते थे सेक्स तो मैं जानती हूं। और कोई नहीं।’’ कामना अपना पिछला इतिहास अनुनय से शेयर नहीं करना चाहती थी। वैसे उसे याद भी नहीं था कि कोई और दो बार एक साथ किया हो, हां पति ने शादी के शुरुआती दिनों में दो बार सेक्स किया था तो उसे वह याद था और इस परिस्थिति को कामना ने पति से कनेक्ट कर दिया।

मगर हां, कामना का यह कथन कि दो बार सेक्स करने वाला जानदार मर्द माना जाता है, उसमें जोश तीव्रता के साथ बढाने लगा। फिर कामना उसके संवेदनशील अंगों को अपने स्पर्श व चुम्बन से जगा भी तो रही थी, इसका असर भी हुआ और पुनः वह सेक्स के लिए तैयार होने लगा मगर इस बार उसमें बेकरारी अधिक नहीं थी और वह कामना की इच्छा से साथ देता जा रहा था। कामना में पहले से प्यास थी और जब वह समझ गयी कि इसका शरीर अब सेक्स को तैयार तो इस बार वह खुद ऊपर आ गयी और अपने शरीर से कनेक्ट करवा यौन क्रिया करने लगी। अनुनय यह पहली बार देख रहा था तो वह अधिक मस्त हो रहा था और नीचे से वह सपोर्ट देता जा रहा था। वैसे कह तो यह भी रहा था कि मेरे गांव की लड़की और सेक्स का गोला, कहां से सीखी यह सब। कामना आनंद लेते हुए बोली, ‘‘आप मजा लीजिए, और कुछ न सोचिये और और यह साथ व रफ्तार बढता गया। इस बार कामना के जिस्म को तृप्त मिल गयी और अनुनय इसलिए भी अधिक प्रसन्न था कि उसने दो बार किया था और कामना के कथनानुसार, वह मजबूत मर्द था।

इसके बाद दोनों को घर जल्दी जाने का एहसास हुआ और फटाफट तैयार हो घर के लिए निकल गये। रास्ते भर दोनों खुश व प्रसन्न थे। अब झिझक नहीं थी और एक-दूसरे से खुलकर मजाक कर रहे थे। अनुनय ने कामना से कहा कि उसे जब कॉलेज जाना हो तो फिर वह उससे मिल लें और कभी-कभी यह साथ देदे।

कामना ने कहा कि अगर अवसर मिलेगा तो जरूर और दोनों गांव पहुंचने पर अपने-अपने घर हो लिए। यद्यपि थोड़ी देर जरूर हो गयी थी तो कामना ने कहा कि कालेज में बहुत भीड़ थी तो जानकारियाँ जुटाने व फार्म भरने में देर हो गया, बस भी देर से मिली, इसलिए ।

कामना के लिए अनुनय का साथ टॉनिक का काम किया। अब कुछ दिन उसका सेक्स पर ध्यान नहीं गया और वह अपने पढाई पर ध्यान केंद्रित करने लगी। यद्यपि कठिनाई यह थी कि उसने साइंस लिया था और उसके किसान पिता के लिए उस हेतु ट्यूशन की व्यवस्था संभव नहीं था। किंतु कामना ने करीब-करीब हर विषय का नोट्स खरीद लिया था और वह उसी से तैयारी करने लगी। सुखद संयोग, कामना की मेहनत रंग लायी व नियत समय पर परीक्षा होने के बाद वह द्वितीय श्रेणी में पास हो गयी।
उसका पास होना मां-पापा के लिए भी खुशी की बात थी मगर इसी के साथ यह चर्चा भी बढता जा रहा था कि उसके आगे का भविष्य क्या होगा।

उसी दौरान उसके एक काका जो दिल्ली में रहते थे, किसी काम से गांव आए। चूंकि कामना अपनी दादी की लाड़ली थी तो दादी ने कामना के लिए काका से बात की कि उसे भी दिल्ली ले जाय ताकि वह कुछ वहां पर कर सकें। काका तैयार हो गये और कामना काका के साथ दिल्ली आ गयी। कैसे न कैसे उसके पति को भी मालूम हो गया कि कामना दिल्ली आ रही है और उसके पति उसे लेने स्टेशन पर ही आ गये। मगर अब तक कामना के मन में पति के प्रति काफी गुस्सा भर आया था। वह एक साल से करीब दूर थी और बीच में भी उन्होंने कोई खोजखबर भी नहीं ली थी तो कामना का पति से गुस्सा होने की बहुत सी वजह थी। इन मनमुटाव की वजह से वह स्टेशन से नहीं गयी अपने पति के पास।

मगर उसके पति भी जिद्दी थे। शायद उनका मानना था कि अगर पत्नी शहर में तो उसे मेरे साथ होनी चाहिए। वह कामना के साथ नहीं जाने पर काका के यहाँ वे भी आ गये और यहाँ काका से अनुरोध किया कि कामना को मेरे साथ जाने दे। काका ने कामना से पूछा तो वह रोने लगी और पति से नराजगी की विभिन्न वजह बताते हुए उसने पति को अपनाने से साफ मना कर दिया। और इतना ही नहीं, रात में उसका पति रुका तो कामना उस कमरे में उसके साथ सोने तक नहीं आई। उसका पति और अपमान बर्दाश्त न कर पाया और जब सबलोग सो गये तो वह अपना हाथ ब्लेड से काट लिया।

जब सब जगे तो उनकी हालत देख अचंभित। उसके काका लोग घबरा गये, मगर उसके पति को शायद जिंदा रहना था तो कटी हुई कलाई का खून जम गया, जिससे जख्म तो बहुत बन गया मगर सांस बची रह गयी। उनका प्राथमिक उपचार किए व काका ने उन्हें घर से चले जाने को कहा ताकि कुछ उन्हें हो तो उसका बोझ उनके सर न आय।

पता नहीं उस दौर में कामना के अंदर कहां से पति के विरुद्ध इतना गुस्सा आ गया था कि इसके बावजूद वह पति के साथ विदा नहीं हुई।
दो-तीन दिन गुजर गया। तब तक जख्म उसके पति का पक गया था मगर वे अड़े थे कि जब तक मेरी बीवी नहीं आएंगी, हम न दवा लेंगे न इलाज कराएंगे। कैसे न कैसे यह खबर कामना के देवर रंधीर को पता चली। उस दौरान वे दिल्ली में ही थे। पहले उन्होंने भाई को समझाया मगर जब वे अपने जिद पर अड़े रहे तो वे कामना को लेने काका के यहाँ आए।

उनहोंने कामना के काका को समझाया और उसके पति की परिस्थिति व जख्म की हालत बतायी। उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘‘अगर मेरे भाई को कुछ हो गया तो उसके आप जिम्मेदार माने जाएंगे । कामना यानी मेरी भौजी का मेरे भाई से तलाक नहीं हुआ है जो आप उन्हें अपने पति के साथ जाने न दे रहे। आप बड़े तो आपका काम दोनों को मिलाना, परिस्थिति को खराब करना नहीं है।’’

काका पर उसके देवर की बातों का असर हुआ और वे फिर कामना को समझाए। कामना काका की भक्त सी थी उस दौरान और जो वे कहते, तुरंत उस हेतु तैयार हो जाती। और इस तरह कामना अपने देवर के साथ पति के पास आ गयी। यहाँ आकर देखा तो उसके पति के जख्म की हालत बहुत खराब थी। कामना तब उनका जख्म साफ किया और अपने हाथ से दवा लगायी। इधर पति तो पहले किसी के साथ शेयरिंग में रहते थे व जैसे तैसे दिन काटते थे। उनके पास इतना पैसा नहीं था कि किचेन व गृहस्थी का सामान जुटाये। किंतु कामना के आने के बाद उसके देवर करीब 1200 रू. का किचेन का तत्कालिक सामान खरीद दिया और कुछ राशन भी भर दिया, उनकी गृहस्थी जमने लगी।

यद्यपि कामना पति के पास आ तो गयी थी मगर अभी भी विभिन्न मुद्दों पर उसे अपने पति से बहुत शिकायत थी। ससुराल में हुए दुर्व्यवहार पर पति का मौन होना, गांव वाले रिश्तेदार के पास क्यों रहना और भी बहुत कुछ तो साथ आने के बावजूद वह इतना स्वीकार नहीं कि थी कि पति को खुलकर प्यार करे व साथ दे किंतु कामना का पति गंभीर खुश थे कि उनकी बीवी उनके पास आ चुकी थी। जिससे हंस-बोल सकते हैं और जरूरत पर अपना अधिकार भी जमा सकते हैं। वह उनकी अपनी है और उसके लिए उन्हें कोई मना नहीं कर सकता।

खाना-पीना होने के बाद घर तो एक ही था मगर घर से सटा बरांडा था जहां उसका देवर अपना बिछौना लगा लिया और भाई-भाभी को कमरे में छोड़ दिया।
उसका पति कोई अमीर नहीं था जो कमरे में अत्याधुनिक सुविधा होती। एक छोटा सा चौकी था और उसी में किचेन भी।
सोने के लिए दोनों को एक छोटा सा चौकी ही मिला और कामना उसी चौकी पर सोने की कोशिश करने लगी। शायद जब उसके पति गंभीर को लगा कि अब उसका भाई सो गया होगा, वह कामना का हाथ पकड़ लिया और धीरे-धीरे उसे छूने की कोशिश करने लगा। कामना बिना बोले किंतु हाथ छिटकने की कोशिश करती हुई विरोध जतायी मगर गंभीर धीरे से बोला, ‘‘ पति हूं तुम्हारा और सिर्फ तुम मेरी सबकुछ। प्लीज विरोध न करो, देखो ना..अभी भी कितना जख्म मेरा..तुम्हारे लिए तो मैं मरने तक के लिए तैयार, तुम मेरे साथ जीने की कोशिश तो करो...प्लीज जो हक मेरा,,उसे लेने दो।’’ गंभीर का ऐसा निवेदन सुनकर कामना का गुस्सा थोड़ा ठंढा तो हुआ मगर वह जतायी नहीं और बोली, ‘‘मेरा मन नहीं’’
‘‘मगर मैं अपने तन-मन का क्या करूं, यह जैसे पागल हुआ जा रहा है। माफ करो..मैं नहीं रूक पाऊंगा। कब से तेरे इंतजार में...अब तुम्हें पाकर खुद को वंचित नहीं रख पाऊंगा।’’ और वह अपनी पकड़ बढाता ही गया और कब कैसे वह ऊपर होते हुए नीचे पहुंच गया और ‘जो’ उसे चाहिए था, उसे सहलाने लगा। ’’

काफी दिनों बाद पुरुष का स्पर्श पाकर कामना का जिस्म पिघलता जा रहा था। उसका पति इस पहल से खुद को ही नहीं, कामना के स्त्रीत्व को जगा रहा था जो कि कब से प्यासी थी। बावजूद कामना को गुस्सा था और वह समर्थन नहीं कर रही थी। किंतु गंभीर आशावादी था और अपने लक्ष्य के प्रति कंेद्रित। उसे जब अंदाजा हो गया कि कामना का जिस्म अब उसे ग्रहण करने के लिए तैयार तो खुद को उसमें प्रवेश कराना शुरू कर दिया। शायद यहीं दोनों चाहते थे, कामना भी।

जैसे-जैसे तन मिलता जा रहा था, मन की गांठे खुलने लगी थी और सारा गुस्सा व विकृतिया इस मधुर मिलन के साथ भष्म होने लगा था। शायद तभी प्रेम व सेक्स को मानव जीवन के लिए अच्छा व गुस्सा व विकृतियों को दूर करने के लिए जरूरी बताया है।
कामना फिर खुद को रोक नहीं पायी और खुलकर साथ देने लगी, बोलने लगी, ‘‘अब तो मुझे अकेला नहीं छोड़ियेगा ना..हां मुझे बहुत प्यार कीजिये...इतना कि मैं मना करूं भी तो मुझे मत छोड़ियेगा। आप मुझे मिलते नहीं थे, तभी तो मैं गुस्सा थी। स्त्री को चाहिए ही क्या, जरूरत पूरी हो..मतलब भूख लगे तो भोजन मिले।‘‘

उसके पति गंभीर पर जोश बढ़ता जा रहा था, बोला, ‘‘कौन सा भोजन..ये जो कर रहा हूं!’’
रंग कामना पर भी चढ रहा था, बोली.‘‘हां.हां..यह भी।’’
’‘और..क्या चाहिए!’’
‘‘कि यह पल कभी खत्म न हो!’’ कामना पति द्वारा मिल रहे आनंद का मजा लेती हुई बोली।
‘‘कौन सा पल’’ गंभीर पत्नी को और उकसाने के उद्देश्य से बोला।
कामना इशारा समझते हुए बोली, ‘‘प्यार, सेक्स, रोमांच और.. और ये आनंद और आपका ये साथ..!’’
‘‘ठीक है खूब प्यार करूंगा बस मुझसे अलग होने की कोशिश न करना।’’
‘‘बिल्कुल नहीं करूंगी चाहे और कुछ भी करूं।’’ इन्हीें सब बातों के साथ लंबी जुदाई के बाद उन दोनों का मधुर मिलन पूरा हुआ और वह रात उनदोनों के लिए खुशनुमा गुजरी।
शारीरिक मिलन व साथ ही मन के खुलते गांठ एक-दूसरे के प्रति प्यार व विश्वास बढा दिया। अगले दिन दोनों पति-पत्नी प्रसन्न थे व कम साधन में भी खुश रहने की कोशिश करने लगे किंतु इन सब चीजों को देखकर रंधीर शायद जलने लगा।

वह चाहता तो था कि भाई-भाभी साथ रहें मगर प्यार से, शायद यह नहीं चाहता था अथवा उसके अंदर वह चोर बैठा हुआ था कि भाभी उसके इशारों पर गांव के तरह बिंछ जाय जिसके लिए कामना अब तैयार नहीं दिखती थी। यद्यपि इस दौरान गृहस्थी जमाने के लिए रंधीर 1200 रुपया खर्च किया था बावजूद उसकी भाभी की यह अकड़ उसे अच्छी नहीं लगी क्योंकि उसने गौर किया कि कामना जितना प्यार से उसके बड़े भाई गंभीर से बात करती है, उससे नहीं करती है।

वह चाहता था कि कामना उसके बगल में बैठे और जैसे कामना के यौवन का मजा वह गाँव में लेता था, वह मजा लेता रहे। फिर उसकी सोच थी कि दोनों पति-पत्नी को मिलाकर व उन दोनों की गृहस्थी के लिए कुछ पूंजी जुटाकर भी उसने कुछ एहसान भाभी पर कर दिया था। उसे खुद पर गुमान होने लगा था कि अब तो जरूर उसकी भाभी को उसकी बात माननी चाहिए। वह मन ही मन सोचता, ‘‘जैसे भाभी मेरे भाई गंभीर के साथ मजा से सेक्स करवाती है, मुझे भी भाई के परोक्ष में तो करने देगी? हां-हां क्यों नहीं, पहले भी तो सेक्स किया था, कितना मजा देती है, अब भी वह देगी, बस एकांत मिल जाय, फिर तो मना ही लूंगा।’’ एक तरफ रंधीर मन ही मन कामना के साथ पुनः करने का ख्वाब सजा रहा था किंतु कामना व्यवहारिक रूप से ठंढी सी दिख रही थी।
क्योंकि वह अपने ससुराल में रंधीर द्वार किए दुर्व्यवहार को भूली नहीं थी। किंतु यह बात रंधीर को शायद पता नहीं था और बस एकांत की तलाश कर रहा था जब वह अकेले में भाभी से मिल सकें और..और..फिर..।

करीब हफ्ते भर बाद जब उसके पति के हाथ जख्म ठीक सा हो गया तो वो किसी काम से निकले। कामना घर का काम निबटाने के बाद जब नहासुनाकर व खाना होने के बाद लेटने आई तो  बोली, ‘’ मैं जरा आराम कर लूं, अभी तो बाहर धूप, आप भी चाहे तो आराम कर लीजिए, कहूं तो अंदर ही दूसरा बेड बिछा दूं। ’’

रंधीर बोला, ‘‘ नहीं, इसकी जरूरत नहीं, आप लेटिये, मुझे सोना होगा तो मैं स्वयं बिछा लूंगा।’’ ऐसा कहते हुए वह कमरे का लाइट बंद कर दिया और दरवाजे के पास आ एक उपन्यास पढने लगा।

ऐसा होते देख कामना अपने बेड पर सोने आ गयी। अभी जरा उसकी आंख ही लगी थी कि कामना को महसूस हुआ, ‘‘मेरा पेटीकोट उठा हुआ है और कोई मुझे.....।’’
क्रमशः....

-कुलीना कुमारी




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