अहिंसा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है शादीशुदा महिला के जीवन में। प्रायः प्राकृतिक रूप से शारीरिक तौर पर महिला पुरुष से कमजोर होती हैैं। ऐसे में बुद्धिमानी यही है कि महिला-पुरुष में लड़ाई होने पर महिला पुरुष से शारीरिक तौर पर कुश्ती ना करे। यहां महिला पुरुष की तुलना में कमजोर होने की वजह से उसके हारने की संभावना अधिक है। तो क्यों नहीं महिला अहिंसात्मक शस्त्र का प्रयोग करे व अपनी बुद्धि का उपयोग कर पुरुष को हरा दे और अपनी वह बात मनवाये जो वह करना चाहती है। - कुलीना कुमारी
हर वर्ष 2 अक्टूबर को हमारे देश में गांधी जयंती मनाया जाता है जबकि उनके अहिंसक सोच की वजह से इसी दिन को पूरा विश्व ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाता है। गांधी जी का विश्वस्तर पर अपनी एक विशेष पहचान है, उन्होंने अपने प्रयत्नों से न केवल अपने देश में आजादी के लिए विशेष प्रयास किये, बल्कि विदेश यानी दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए भी नागरिकों के साथ होने वाले भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने अपने देश की जनता के लिए, यहां के पीड़ितों व कमजोर वर्गों के लिए काफी काम किया। इनमें किसान, मजदूर, शहरी श्रमिक के अलावा सामाजिक रूप से नीचले पायदान पर पड़े अछूतों के लिए किया उनका योगदान प्रमुख हैं। उन्होंने अछूतों को ‘हरिजन’ नाम दिया और उन्हें सामाजिक जीवन धारा में जोड़ने के लिए अस्पृश्यता के विरोध में कई कार्यक्रम चलाएं।
गांधी जी का साथ महिला वर्ग को भी मिला। उन्होंने महिलाओं को भी आजादी के आंदोलन में सहयोग देने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे उसमें पुरुष के बराबर कार्य किए जाने की प्रेरणा बनी, महिलाएं न केवल आजादी के आंदोलन में भागीदार बनीं, बल्कि बड़ी संख्या में घर से निकलना शुरू करने से लेकर शिक्षा व मूलभूत विकास के तरफ कदम बढ़ाना शुरू किएं। किसान, श्रमिक, हरिजन व महिलाएं ऐसे वर्ग हैं, जो आज भी पूर्ण सशक्त नहीं पर आजादी के दौरान तो उनकी स्थिति और बहुत खराब थी पर गांधी जी ने उनकी दशा देख व समझकर उनकी आवाज़ बनना स्वीकार किया व उनकी स्थिति की मजबूती के लिए हर संभव प्रयास किएं। अगर गौर से देखें तो महिला, किसान, श्रमिक व हरिजन को मिलाकर देश की कुल आबादी का तीन हिस्सा प्रतिनिधित्व करती दिखेंगी। इसका मतलब यह भी कि गांधी जी का कार्य-लक्ष्य बहुसंख्य गरीब या पिछड़ी आबादी के विकास के तरफ था। वे सचमुच इस अर्थ में महान आत्मा थे कि जिन्हें विकास व मदद की जरूरत थी, उनके हित में वे खड़े हुएं। एक पिता के तरह अपने कमजोर बच्चों के तरफ अधिक सजग व अधिक निष्ठा।
अपने राष्ट्रप्रेम की वजह से उन्होंने कई गुणों को धारण किया, परंतु हमारे देश के लोगांे के लिए इतना कुछ कर पाना कि देशवासी द्वारा उन्हें राष्ट्रपिता का उपाधि दिया गया, उनकी सारी उपलब्धियों में से मुझे सबसे बड़ी उपलब्धि लगती है। गांधी ने अपने लक्ष्यों को प्राप्ति के लिए सत्य और अहिंसा जैसे मार्ग अपनाएं व न केवल इसकी बदौलत लक्ष्य प्राप्ति की बल्कि अपने जीवन व्यवहार से वे लोगों को जीने के ऐसे रास्ते दिखाए जो उनके जाने के कई दशक के बाद भी आज भी सोचनीय व पठनीय है। गांधी दर्शन उन्हीं के द्वारा जिए गए या अपनाएं गए व्यवहार का सार है।
महात्मा गांधी अपना जीवन नियम व अनुसाशन के साथ जीये। वे सत्य और अहिंसा के प्रतीक माने जाते हैं। महात्मा गांधी ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जिन्हें अपने भारत के राष्ट्रपिता या बापू की उपाधि मिली। किसी भी व्यक्तित्व के निर्माण में व्यक्ति का दो पार्ट मुख्य रूप से शामिल होता है, हृदय और समझदारी, जो अध्ययन से हासिल होता है। जैसे किसी भी बच्चे के लिए मां का मतलब प्यार, स्नेह व ममता का प्रतीक होता है और मां का स्थान उसके हृदय में होता है। ठीक इसी तरह पिता का मतलब न केवल प्यार बल्कि बाहरी दुनियां से रूबरू कराने वाला व व्यक्ति के मजबूती का प्रतीक होता है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन काल में न केवल भारत की आजादी के लिए अतुलनीय योगदान दिया व बल्कि देश के विकास व यहां के कमजोर वर्गाें के हित के लिए भी काफी काम किया। कमजोर वर्गों में भारत की महिलाएं भी शामिल है। हमारे बापू ने अपने जीवन को जीवन मूल्यों के साथ जीकर और लोगों को भी मूल्यों के साथ जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने हर परिस्थिति में सत्य अहिंसा जैसे मूल्यों के साथ जीवन को नए तरीके से जीने का मंत्र भी दिया।
वैसे गांधी दर्शन के अंतर्गत मुख्य रूप से 6 सिद्धांत है, जो सत्य अहिंसा, शाकाहारी, ब्रह्मचर्य, सादगी, तथा विश्वास मुख्य रूप से शामिल है। पर अगर गांधी दर्शन और उसका महिला जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव पर बात करें तो मुझे आज के परिप्रेक्ष्य में भी महिला के हित के लिए गांधी दर्शन का दो सि़द्धांत सत्य और अहिंसा महिला के लक्ष्य के लिए अधिक लाभदायक और जरूरी लगता है। इस दोनों सिद्धांत को अपनाने से न केवल महिला का जीवन सरल होगा बल्कि महिला के लिए लक्ष्य प्राप्त करना भी आसान होगा, साथ ही घर में सुख-शांति भी बनी रहेगी।
यद्यपि महिलाओं के लिए काफी समय बदला है मगर आज भी इसे पुरुषों के खांके में कसा जा रहा है। चरित्र उसके नापने के पैमाने बने हुए हैं, अंदरूनी स्तर पर महिला के साथ पुरुष समाज कितना भी नंगा होना चाहे, मगर सार्वजनिक रूप से किसी पुरुष के साथ महिला का नाम नहीं जुड़ना चाहिए। अगर किसी महिला के साथ किसी पुरुष का नाम जुड़ गया तो पुरुष नहीं बदनाम होते, बदनाम महिला होती है। चाहे प्यार और संबंध का सृजनकर्ता पुरूष ही बना हो मगर उसका आरोप महिला के सिर ही थोपा जाता है। बावजूद महिला की बदनामी के साथ कही इसका छींटा पुरुष के दामन पर भी ना पड़े, इसीलिए चोरी-चुपके प्यार और सेक्स के लिए महिलाओं को बरगलाने का खेल बड़े स्तर महिला के साथ खेला जा रहा है। महिला का दोष यह कि इसे लाज-शरम का नाम देकर वह चुप हो जाती है और शुरूआत में ही इस बात की चर्चा अपने अभिभावक से नहीं करती, जहां अभिभावक से की भी जाती, वहां भी लाज-शरम या बदनामी की सोच ने बात थाने तक नहीं पहुंचायी जाती। महिला या उसके तरफ के लोगों की चुप्पी छेड़छाड़ करने वाले को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है, और यह छेड़छाड़ का अंजाम रेप पर जाकर या जबरदस्ती के यौन संबंध पर जाकर खत्म होता है। महिलाओं में अगर सच बोलने की आदत शामिल हो जाए तो अपने सच की बदौलत किसी भी परिस्थिति का सामना वे बेहिचक रूप से कर सकती हैं व अपने शरीर पर बुरी नजर रखने वाले को या उसकी इच्छा के बगैर उसके शरीर संग छेड़ने वाले को वह शर्म-हया के नाम पर माफ नहीं कर सकतीं। यहां गांधीवादी सिद्धांत ‘सत्य’ का पालन महिलाओं के जीवन में सच के संग जीने की प्रेरणा के साथ-साथ उन्हें हर परिस्थिति में सर उठाकर जीने की हिम्मत देगा।
उसी तरह अहिंसा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है शादीशुदा महिला के जीवन में। प्रायः प्राकृतिक रूप से शारीरिक तौर पर महिला पुरुष से कमजोर होती हैैं। ऐसे में बुद्धिमानी यही है कि महिला-पुरुष में लड़ाई होने पर महिला पुरुष से शारीरिक तौर पर कुश्ती ना करे। यहां महिला पुरुष की तुलना में कमजोर होने की वजह से उसके हारने की संभावना अधिक है। तो क्यों नहीं महिला अहिंसात्मक शस्त्र का प्रयोग करे व अपनी बुद्धि का उपयोग कर पुरुष को हरा दे और अपनी वह बात मनवाये जो वह करना चाहती है।
उपरोक्त संदर्भों के माध्यम से कहा जा सकता है कि गांधी जी का सत्य और अहिंसा अपनाए जाने से महिला के जीवन में लाभ होगा। वैसे गांधी जी द्वारा दिए गए कुटीर उद्योग के लिए प्रोत्साहन भी मुझे महिला की आत्मनिर्भरता का एक अच्छा उपाय नजर आ रहा है। लघु उद्योग के जरिये महिला घर व बच्चों को देखते हुए भी अपने लिए आर्थिक उपार्जन कर सकती है। वैसे समय-समय पर सरकार लघु उद्योग के विकास के लिए योजनाएं बनाती रहती है व उसके कार्यान्वन हेतु मदद की घोषणा करती रहती है। शीक्षित व बुद्धिमान महिलाएं इसका लाभ ले सकती हैं। वैसे आत्मनिर्भरता के दौर में महिलाओं ने घर के बाहर भी जाकर काम करना शुरू कर चुकी हैं पर आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं लघु उद्योग अपनाकर ही अपना खर्चा निकाल रही है। कमपढ़ी-लिखी महिलाएं साथ ही सिलाई-कढ़ाई, ब्यूटिशियन जैसे कोर्स करके भी महिला अपना रोजगार चला रही है। पढ़ी-लिखी महिलाएं ट्यूूशन व कम्प्यूटर संेटर चलाकर भी अपना जीवकोपार्जन कर रही है। वर्तमान समय में आवश्यकता है कि गांधी जी का फार्मूला आत्मनिर्भरता के लिए घरेलू उद्योग के सोच को और विस्तार दिया जाएं और इस क्षेत्र में नए-नए संभावना की तलाश की जाएं।
कुल मिलाकर, गांधी जी का दायरा बहुत बड़ा है पर गांधी जी के कुछ सिद्धांतों को जीवन में अपनाकर महिलाएं काफी लाभप्रद हो सकती हैं, अपने जीवन में सत्य को धारण करने से न केवल उसमें हिम्मत व बल का संचार होगा और वह निडर होकर जीने के तरफ प्रयत्नशील होगी बल्कि अहिंसा का प्रयोग उसे अपने दिमाग का इस्तेमाल अधिक करने के प्रति प्रयत्नशील करेगा, इस प्रयास से न केवल वह अपने लक्ष्य को प्राप्त होंगी बल्कि खुशी और शांति के दरवाजे भी उसके लिए खुल जाएंगे। कुटीर उद्योग उसे घर-परिवार के सुख-शांति के साथ आर्थिक निर्भरता के दरवाजे खोलेगा जो उसे अपने जीवन का निर्णय अपने हिसाब से करने के लिए स्वतंत्र करेगा।
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