हम त्योहार उसी दिन मनाते हैं
जब प्यार कहीं हमें मिलता है
सम्मान कही हम पाते हैं
होली क्या दिपावली क्या
हमारा जश्न उसी दिन होता है
जब हमारी मेहनत सराही जाती हैं
अच्छा हमें बताते हैं
फर्ज की बलिवेदी पर हम चढ़े ही रहते
कभी उतरे तो लगे आराम हमारे हिस्से में भी हो
किसी के मन में प्यार का सागर लहराये
कुछ अधिकार हमारे हिस्से में भी हो
जब वो अपने मन का मालिक हमें बताते हैं
हम त्योहार उसी दिन मनाते हैं
हम जननी भी बने, पालनकर्त्ता माता भी
मगर जब बच्चंे बड़े हुए तो हमको भूल गए
अब हमारी ममता वो समझते ही नहीं
हम क्या चाहे, सुनते ही नहीं, अपना ही सुनाते गए
जब कभी बच्चा मेरा मेरे पास आ, हाल मुझसे पूछता हैं
हम त्योहार उसी दिन मनाते हैं..
ब्याह कर मायके का चौखट क्या पार किया
हमारे माता-पिता तो हमको भूल गए
उन्हें याद ही नहीं रहे, उनकी बेटी भी कहीं
वो तो अपनी दुनिया में गुम हो गए
जब कभी भूले-बिसरे वो हमारी खोज करते हैं
हम त्योहार उसी दिन मनाते हैं..
समाज के लिए भी हमारा योगदान कम नहीं
मगर इसका श्रेय हमको मिलता ही नहीं
कितना भी अच्छा करम करते जाए
मगर पुरस्कार जैसे हमारे लिए बना ही नहीं
जब कभी सामाजिक प्रतिष्ठा हम पाते हैं
हम त्योहार उसी दिन मनाते हैं..
-कुलीना कुमारी
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