Monday 14 November 2016

कला बच्चों में रचनात्मक व सकारात्मक भाव उत्पन्न करती है-हीरालाल राजस्थानी, Art

बाल दिवस पर विशेष वार्तालाप  हीरालाल राजस्थानी से...


प्रश्न. कला की दुनिया किस तरह बच्चों को आंतरिक व बाहरी अभिव्यक्ति समझने में सहायक है? क्या इससे प्रोत्साहन व मार्गदर्शन मिलता है?
उत्तर: कला की दुनिया प्रकृति की भांति रहस्यमयी है। जिस तरह से प्रकृति के अनेकों पहलू हैं। ठीक उसी तरह कला के भी बहुत आयाम हैं जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, नृत्य, स्थापत्य, छायाचित्र और लेखन। कला की यात्रा अंतर्मन से शुरू होकर बाहरी परिदृश्य का वृत्त खिंचती है। यहाँ यह कहना उचित ही होगा कि कला प्रकृति और प्रवृति को समझने का महत्वपूर्ण टूल है। जिसके द्वारा हम अपनी अभिव्यक्ति को सशक्त बनाते हैं। इससे बच्चों को प्रोत्साहित कर उनके दिलों-दिमाग में संवेदनशीलता के बीजारोपण करना बहुत सहज है।

प्रश्न. भारतीय परिदृश्य में कला आज भी उपेक्षित सी क्यों है? वो कौन से कारण है कि मां-बाप या अभिभावक बच्चों को डॉक्टर-इंजीनियर बनाना चाहते हैं, कलाकार नहीं!
उत्तर: वैसे तो भारतीय कला का परिदृश्य बहुत ही शिक्षाप्रद और प्रभावशाली रहा है। किसी भी देश का इतिहास व संस्कृति वहां की कला के विभिन्न रूपों में दर्ज मिलती है। या यों कहें कि कला के द्वारा ही हम अपनी सभ्यताओं को समझ पाते हैं। रही बात उपेक्षित होने की तो यहाँ पूंजीवाद विचारों की बहुलता पर हावी हो रहा है। हर चीज़ को पैसों से तोला जा रहा है। यही कारण है कि मानवीय मूल्य दरकिनार होते जा रहे हैं। भूख विचार से बड़ी हो गयी है। विचार भूख के आगे लड़खड़ाने लगा है। देखा जाये तो डॉक्टर-इंजीनियर हमारे समाज का पूंजीवादी चेहरा है जो कला संवेदनाओं को मात्र मनोरंजन समझता है। जबकि कला पहले मानवता को पोसती है बाद में पेट को। यही कारण है कि कला आज उपेक्षा का पत्र बनती जा रही है।

प्रश्न. बदलते समय के साथ बच्चों में गुस्सा व हिंसात्मक गतिविधि बढ़ती जा रही है। क्या उन्हें नियंत्रित करने में रचनात्मक व सकारात्मक बनाने में कलाएं सहायक है ? ‘तारे जमीन पर’ जैसी कुछ फिल्में इसे मानती रहीं है। आप इसको किस रूप में देखते हैं? 
उत्तर: यह सही है कि बच्चों में हिंसात्मक प्रवृतियां बढ़ती देखी गयी है। जिसकी जिम्मेदार हिंसक मनोरंजन के साधन माने जा सकते हैं। जैसे अनेकों वीडियो गेम ऐसे है जो पूर्णरूप से हिंसा से भरे हुए हैं। इसके आलावा फिल्में भी बिना हिंसा के दृश्यों के मुकम्मल नहीं हो रही। आज हम अपना स्वाद हिंसा में खोज रहे हैं। स्कूलों में रचनात्मक कार्यों की कमी और कला जैसे विषयों को दोयम दर्जे का समझना भी इसका बहुत बड़ा कारण माना जाना चाहिए। जब कि कला बच्चों में सकारात्मक व रचनात्मक भाव उत्पन्न करती है। वे कला के जरिये जीवन के प्रति संवेदनशील बनते हैं। तारे ज़मीं पर यहाँ बहुत बड़ी सिख लेकर उभरी है। यह मात्र मनोरंजन नहीं बच्चे के मनोविज्ञान को भी समझने व समझाने का माध्यम बनी क्योंकि इसके द्वारा यह उजागर होता है कि हर बच्चा डॉक्टर या इंजीनियर नहीं हो सकता। कुछ बच्चे रंगों और रेखाओं की भाषा को ही अपना माध्यम समझते हैं। उनके साथ हम डॉक्टर या इंजीनियर का प्रयोग नहीं कर सकते। हमें बच्चों पर थोपना छोड़ना होगा। 

महिला अधिकार अभियान, नवम्बर 2016, पृष्ठः16 से


महिला अधिकार अभियान, नवम्बर 2016, पृष्ठः17 से



प्रश्न. कुछ बच्चों में कला के प्रति अभिरूचि बचपन से देखी गई है। इन बच्चों को प्रोत्साहन के लिए क्या किया जाय, क्या सरकार के पास योजनाएं हैं?
उत्तर: सरकार के पास योजनाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन अभिभावकों के पास समझ की कमी है। अभिभावक बच्चों को आमदनी का जरिया समझकर सोचते हैं। वे बस चाहते हैं कि जल्द से उनका बच्चा पढ़े, लिखे और नौकरी हासिल करे बस। उसे क्या चाहिए इसकी किसी को फ़िक्र नहीं होती। यही सारी कहानी बिगड़ती है। हमें बच्चों की अभिरुचि के अनुसार सोचना होगा। एक अच्छे गाने वाले बच्चे को कॉमर्स करवाने का क्या औचित्य। खुश तो वह गाना गा कर ही हो सकता है। उसी क्षेत्र में ही वह अद्धभुत कर पायेगा। उसकी इच्छा को नज़रअंदाज़ करना जीवन को गलत दिशा में लगाने जैसा होगा। जिन बच्चों में बचपन से ही कला के प्रति रूचि है तो उनको उसकी उचित शिक्षा दिलानी चाहिए। ताकि वह उसमें निखर सके।

प्रश्न. कुछ शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि शिक्षक अगर अच्छे से बच्चों को समझने वाला हो तो उस स्कूल के सभी विषय रिजल्ट का ग्राफ बढ़ जाता है। बहुत से स्कूल में कला के शिक्षक नहीं हैं। क्या इसलिए तो नहीं कला पिछड़ी हुई ? आप इसको किस रूप में देखते हैं तथा कला के तरफ रूझान के लिए किस तरह का प्रयास किया जाय ?
उत्तर : यह माना जा सकता है कि अनेक स्कूलों में कलाध्यापक नहीं है। लेकिन अब धीरे - धीरे इसकी पूर्ति हो रही है। लेकिन कुलीना जी यहाँ पर कला के पिछड़ने की बात नहीं कला को समझने की बात होनी चाहिए। क्योंकि नासमझी के कारण ही कला पिछड़ी हुई है। वैसे देखा जाय तो कला चीजों को वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टि से अविष्कारक संभावनाएं रखना व समझना सिखाती है। कलाकार एक शोधकर्ता, मजदूर, इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी और एक सृजन की तरह सोचकर काम करता है। इससे ऊपर वह एक विचार को पालकर रचना करता है। यह देखते हुए स्वभाविक ही कहा जा सकता है कि कला विद्यार्थी सही मायने में शिक्षा का मतलब समझता है। आमतौर पर आगे चलकर वह एक अच्छा नागरिक व अच्छा इंसान साबित होता है। हाँ इस क्षेत्र में गुणवत्ता के लिए सरकारों को अभी और प्रयास करने होंगे जैसे कला विद्यालयों की स्थापना करनी होगी। तभी सही मायने में कला को प्रोत्साहन मिल सकेगा।

प्रश्न. इसके अतिरिक्त कोई ऐसी बात जो कला से संबंधित हो...आप बताएं। अगर इससे जुड़े कुछ अनुभव हो तो शेयर करें।
उत्तर: कला समाज का दर्पण है। इसके अतिरिक्त कला मनुष्यों को अपने कर्तव्यों और मानवता के प्रति जागरूक भी करती है। जियो और जीने दो का पाठ पढ़ाती है कला। एक अनुभव है जो सांझा करना चाहूंगा। मेरे दो विद्यार्थी थे जिनको कला के प्रति रुझान था। एक चित्रकला में अच्छा था और दूसरा गायन में। स्कुल में उनका अच्छा प्रदर्शन था। बाहरवीं कक्षा के बाद वे स्कुल से पास आउट हो गए थे। कुछ दिनों बाद वे मिलने आये तो मालूम हुआ कि उनके कम नंबर आने के कारण उनको किसी कॉलेज में प्रवेश नहीं मिला। इस कारण वे किसी कंपनी में काम करने लगे थे। जब उनसे पूछा गया कि वे बनना क्या चाहते थे। तो उन्होंने अपने दिल की बात मुरझाये हुए चहरों से कही। चित्रकार और गायक। तो उनको इन दिशा में मार्गदर्शन दिया गया। वो करते गए। आज विकास द्रुपद विद्यालय से अच्छा गायक है। उसके कई कार्यक्रम दूरदर्शन में प्रसारित हो चुके हैं और रोहित छत्तीसगढ़ से मास्टर ऑफ़ फाइन आर्ट से अच्छा चित्रकार बनकर निकला है। वह कई कलाप्रदर्शनी कर चूका है और आज उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव साफ़ झलकते हैं। जीवन समझौतों से मुरझा जाता है।


-संदर्भ : महिला अधिकार अभियान, नवम्बर 2016, पृष्ठः16-17 से

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