Friday 25 November 2016

उठो उठो नारी

उठो उठो नारी
खुद को अबला नहीं समझो
तुम्हीं काली, तुम्हीं दुर्गा
तुम्हीं शक्ति का अवतार भी

देखो दुनिया कितनी बदल गई
तुम अत्याचार सहती ना रहो
बोलो भी टोको भी
चुप्पी की मूरत बनी ना रहो
जब तेेरे स्वर में टहंकार भी

ईश्वर ने पुरूष से ज्यादा
तुम पे भरोसा किया
तो ही मां तुम्हें बनाया
तुम जननी, गृहणी भी
समाज की रखवालिनी
अपने आप से हार ना मानो
जो चाहो कर लो
उठो उठो नारी...



तेरी छाती है इतनी बड़ी
पाके अमृत बढ़ती है दुनिया
तू खुद को क्यों कोसे
क्यों ओछी लगती है दुनिया

कदम बढ़ा के देख
तेरे पीछे सब आएंगे
जो तुम चाहोगी
हो जाएंगे
कुछ के विरोध से डरो नहीं
कितनों को तुम स्वीकार भी
उठो उठो नारी...

जो तेरे खुशियों में बाधक
बदल दो वो धाराएं
जो तेरे जीवन की (बने) बेड़ियां
तोड़ दो वो सीमाएं

आंखें खोल के देख
कितना बड़ा संसार
इसी में तेरे सपने
बिखरी हैं बहार
खुद में घुटती ना रहो
अपनी खुशियां चुन लो
उठो उठो नारी...

-कुलीना कुमारी, 25-11-15

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