Monday 14 November 2016

आखिर कब होगा ! हैप्पी चिल्ड्रेंस डे, Children's Day




महिला अधिकार अभियान, नवम्बर 2016, पृष्ठः11 से
14 नवम्बर पंडित जवाहरलाल नेहरु जी का जन्मदिन बाल दिवस के रूप में   मनाने के लिए निर्धारित किया हुआ हैं। सभी माता-पिता बहुत दिल से इस दिन को अपने बच्चों के लिए मनाते है। पर क्या सच में नेहरुजी ने भारत में ऐसे बाल भविष्य की कल्पना की थी ? भारत में बच्चों का भविष्य वैसा ही है जैसे आज कल के बच्चो का जीवनयापन हो रहा है। चाचा नेहरु का बच्चों  से प्रेम का अर्थ था कि बच्चों का सुंदर सरल और उज्ज्वल भविष्य हो जिसके लिए उन्होंने बहुत कदम उठाये थे।

सुंदर सरल उज्वल भविष्य तो बहुत दूर का प्रश्न हो गया।। यद्यपि भारत के हर कोने में बच्चों को ईश्वर के रूप में रूप में माना जाता है, फिर भी आज की तारीख में जितना कष्ट-संकट भारत के बच्चे उठा रहे हैं, शायद ही कोई और उठा रहा हो क्योंकि भारत के बच्चों का एक बहुत बड़ा हिस्सा जीवन के मौलिक अधिकारों से वंचित है। ग़रीबी की आग में कुपोषण का  शिकार हो रहे हैं। छत मिलना तो बहुत दूर की कोडी हैं, भर पेट खाना भी नसीब नहीं हो पा रहा है। आज हम बाल दिवस के अवसर पर बच्चों की उन समस्याओं पर चर्चा करेंगे, जिन पर बाल दिवस पर कभी सूनने को नहीं मिली। बस दिखा मेरा देश महान  करता बालक और बालिकायों का अपमान। वैसे तो भारत में बच्चों के बहुतेरे अधिकार है पर उनपर अमल नहीं किया जाता क्योंकि उनके लिए इन अधिकारों को दिलाने वाला कोई नहीं है, आज भी बचपन भूखा नंगा बच्चा लोगों के झूठे बर्तन धोने को मजबूर है। कूड़े से बिन कर खा रहा न तन पर कपडा है न पेट में रोटी, भीख मांग कर अपना पेट भर रहा है। बाल स्वास्थ्य का अर्थ है की  गर्भकरने से लेकर कम से कम 5 साल तक बच्चे का खानपान और साफ़ सफाई का विशेष ख्याल रखा जाये। कम से कम 2 साल तक माँ का दूध के साथ खानापीना भी मिले। जिस देश में गर्भावस्था में ही माँ को भरपेट खाने को न मिले, वो माँ भरपेट स्तनपान कैसे करवाए।



बच्चो की बिमारियाँ - निम्न वर्ग के बच्चे गंदगी के कारण कुपोषण का शिकार हो जाते है और अनेक बिमारियां घेर लेती है। समयानुसार उपचार और खुराक ना मिलने के कारण अथवा रहन-सहन के खस्ता हाल से अल्प आयु में मृत्यु का खतरा बना रहता है पर चलो ये तो एक ऐसी समस्या है जिससे भारत हमेशा से लड़ रहा है और न जाने कब तक लड़ता रहेगा। परन्तु इसके साथ साथ कुछ कलयुगी समस्याए उत्पन्न हो रही है।
हम यहाँ पर बाल शोषण की बात कर रहे है। आज की तारीख में  भारत के हर कोने में बच्चों  का कई तरह से शोषण हो रहा है, जैसे स्टडी का दबाव बहुत देखने को मिला रहा है। जिसके कारण हर मातापिता हो या स्कूल के शिक्षक हो, सभी जगह बच्चों पर जरुरत से ज्यादा दबाव बना रहा है जिससे बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैं।

एक और शोषण जो शायद सब से ज्यादा खतरनाक है, वो है बाल यौन शोषण। भारत में कुछ सालो में बहुत भयानक रूप में देखने को मिल रहा है। हर उम्र के बच्चे इस की चपेट में आ रहे है। आज के हाल की अगर बात की जाय तो 2 साल से लेकर 14 साल तक के बच्चें अपने ही आस पास के लोगांे से यौन शोषण का शिकार हो रहे हैं। अपनी ही परिचित लोगों के हाथांे बच्चों का हो रहा है।जिस देश में बच्चो को ईश्वर का रूप मानते है, उस देश का बच्चा अंधकार में डूबता जा रहा है। इतना ही नहीं, इस शोषण का शिकार सिर्फ बालिकाएं ही नहीं बल्कि बालकांे का शोषण भी उतनी ही हो रहा हैं। ये समस्याएं दिन प्रतिदिन एक गंभीर रूप लेती जा रही हैं जिसे शर्मिंदगी के चलते पूरी तरह से दबा दिया जाता है। इसलिए जरुरी है कि हर माता-पिता अपने बच्चों की उचित देख रेख करे और बिना किसी हिचक के समय-समय पर उनसे बाते करते रहे और लोगो को समझने की और थोड़ी बहुत उम्र के मुताबिक सेक्स की सही जानकारी देते रहनी चाहिए।

अपने बच्चों  को ...... अभिभावकों की जागरूकता के साथ-साथ आज जरुरत इस बात की भी है कि स्कूल में भी उम्र के अनुसार यौन शिक्षा दी जाय और उनका मन खेलकूद अन्य सकारात्मक गतिविधियों की और भी करना चाहिए। असल में जिनके पास सत्ता की पॉवर हैं, कुछ करने का दम रखते हैं। वो लोग देश में सिर्फ सेवा के नाम पर लोगों को आपस में लड़वाने और गन्दी राजनीति के अलावा कुछ और नहीं कर रहे। सत्ताधारी लोगों ने 10 प्रतिशत भी अपना काम ईमानदारी से किया होता तो देश के गरीब बच्चों का भी सही से विकास हो रहा होता जो बहुत ही कम या यूं कहे कि देखने को मिलता ही नहीं है।

असल में बाल श्रम को लेकर चिंता इसलिए जाहिर की जा रही है कि भारत को बालश्रम निवारण के लिए प्रतिबद्धता के एवज में बचपन बचाओ आंदोलन के अगुआ कैलाश सत्यार्थी को नोबेल पुरस्कार मिल चुका है और कितनी संस्थाएं और समाज कर्मी बच्चों के कल्याण में सक्रिय है मगर अभी भी बच्चों की स्थिति सोचनीय। कृपया इस पर विचार करें और बाल जीवन के सुधार तलाशने में अपेक्षित सहयोग करें।

रचनाकार-अनुराधा कनौजिया

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