Sunday 13 November 2016

बाल दिवस क्यों, Why Children's Day, Editorial of month Nov 2016




         नवम्बर महीना भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जन्मोत्सव के आगमन के साथ ही बाल दिवस मनाने के लिए खास माना जाता है। चूंकि नेहरू को बच्चों से खूब प्यार था और बदले में बच्चे भी उन्हें प्यार से चाचा नेहरू कहकर संबोधित करते थे। बच्चों से उनके इस विशेष लगाव के परिणामस्वरूप ही उनका जन्म दिन ‘बाल दिवस’ के रूप में लोकप्रिय है।

जैसा कि नाम से ज्ञात है-बाल दिवस मतलब बच्चों का दिवस व इस  दिवस के आगमन के साथ शुरू हो जाती है बच्चों के विकास, प्रगति और उसकी बेहतरी की बातें। इस दिन स्कूलों में विशेष कार्यक्रम आयोजित की जाती है व बच्चों को प्रोत्साहित करने हेतु विशेष प्रयास किए जाते है। स्कूल में मनाया जाने वाला ये उत्सव ज्ञानपरक के साथ-साथ विशेष दर्शनीय होती है, जिसे देखकर व इसमें भाग लेकर बच्चे खुश हो जाते हैं।
सरकार भी बच्चों की बेहतरी के लिए कई योजनाएं घोषित करती है व अपने वक्तव्यों से जताती है कि बच्चे उनके देश का भविष्य व उसकी बेहतरी के लिए वे सचेत है।

मगर बात इससे खतम नहीं होती। किसी भी बच्चे का सबसे अधिक अधिकार अपने मां-बाप व अभिभावकों पर तो माता-पिता का कर्Ÿाव्य भी अधिक हो जाता है। चूंकि बच्चे सबसे ज्यादा मां-बाप से जुड़े होते हैं तो उनसे प्रभावित भी ज्यादा होते हैं। इसलिए मां-बाप व बच्चों के रिश्ते पर ‘बाल दिवस’ के दिन पुनविर्चार अधिक प्रासंगिक। वैसे तो मां-बाप व बच्चों का रिश्ता आजीवन जुड़े रहने का नाम है मगर बचपन का वो काल खास जब तक कि बच्चा युवा नहीं हो जाता और अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो जाता।

Editorial of month Nov 2016


यह अच्छा भी है क्योंकि बचपन जीवन का प्रथम काल और जिसका बचपन सुंदर बीते...उसके भविष्य की अच्छी कामना व उम्मीदें की जाती है। इसकी वजह यह भी कि संस्कार से लेकर शिक्षार्जन व मजबूती की बुनियाद इसी काल में पड़ती है। तभी बचपन को स्वर्णिम काल भी कहा जाता है और विद्यार्थी के रूप में इसका सदुपयोग करने हेतु प्रोत्साहित किया जाता है। माना यह भी जाता है कि इस काल में जैसी परवरिश, शिक्षा व संस्कार मिलता है, उसका असर व्यक्ति पर आजीवन रहता है।

वैसे तो हर मां-बाप के लिए सबसे अधिक महŸवपूर्ण बच्चा तो वो बच्चे के विकास पर ध्यान देते ही है मगर बाल दिवस अगर फिर से अभिभावकों का ध्यान अपनी ओर खींचे तो यह बच्चों के हित में लाभदायक।
दुनिया बदलाव की ओर है। जैसे-जैसे तकनीकी विस्तार हो रहा है व जन्म से ही बच्चे टेलीविजन, कम्प्यूटर व मोबाइल के बीच पलने लगा है, उसकी समझ में भी वृद्धि हो गयी है और वक्त से पहले ही बच्चे परिपक्व हो रहे हैं। बदलते समय के साथ मां-बाप व अभिभावक को भी अपडेट रहने की जरूरत है कि अपने बच्चों के विकास, प्रगति के साथ-साथ उसकी इच्छा-अनिच्छा का भी ध्यान रखें।

चाहे संतान बेटा हो या बेटी, किसी को भी कम न समझे व दोनांे को बराबर महŸव दें। शिक्षा से लेकर रियो ओलंपिक जैसे खेल तक, बेटियों ने साबित कर दिया है कि उसे अवसर मिलें तो कुछ भी कर सकती है। अतः हर बच्चे को मां-बाप पूरा प्यार, अवसर व सम्मान दें।

यद्यपि हर मां-बाप चाहते हैं कि बच्चा उनके पसंद की कैरियर की चुनाव करे। अगर ऐसा बच्चा कर पाते है तो यह अच्छा संयोग। मगर जो बच्चा मां-बाप के कैरियर के साथ न जाना चाहे तो इसे बुरा नहीं मानना चाहिए व उसपर उसके लिए दवाब नहीं देना चाहिए। मां-बाप को समझना चाहिए कि बच्चा अपनी रुचि के विषय में ही बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। अधिकतर लोगों की सफलताएं इसी कहानी को दर्शाती है। चाहे बात साक्षी मलिक की हो, पीवी सिंधु की अथवा किसी अन्य सफल व्यक्ति की...सभी व्यक्तियों में विशेष गुण और जब वे अपने पसंद के क्षेत्र के साथ उस दिशा में सफलता हेतु जी-जान से प्रयास करते हैं तो ही सफलता कदम चूमती है। अतः अभिभावकों को अपने बच्चों पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिए और वे जो करना चाहे, उसमें उनका भरपूर साथ देना चाहिए।

हां, मां-बाप बच्चे के आदर्श होते हैं तो खाली बच्चों को शिक्षा व भाषण देने से बच्चों पर असर नहीं पड़ता। इसके लिए शिक्षक सहित मां-बाप को खुद का आचरण भी अनुकरणीय बनाना चाहिए ताकि बच्चा उनसे अच्छे गुण ग्रहण कर पाएं। समानतापूर्ण व न्यायपूर्ण वातावरण में उसकी परवरिश करें ताकि सच बोलना व नैतिकता के साथ जीना भी उसके आचरण का हिस्सा बनें।

माता-पिता को अपने बच्चों को वो सब चीजें भी सिखानी चाहिए जो भविष्य में उनके जीवन के लिए उपयोगी हो। अपना ध्यान रखने से लेकर जीवकोपार्जन, जीवनरक्षा के उपाय तथा किताबी ज्ञान के अलावा सामाजिक व व्यवहारिक ज्ञान तक।

हां, यह भी सच कि बचपन की उमर ही ऐसी कि बच्चे का खेल में अधिक जी लगता हैं और कच्ची उमर के चलते किसी से भी वह दोस्ती कर बैठता हैं तो माता-पिता को उनपर नजर भी रखनी चाहिए और अपने साथ-साथ बच्चे के व्यवहार का भी अवलोकन करते रहना चाहिए। अच्छा-बुरा क्या है, बताना चाहिए और बच्चों को उसके लक्ष्य तक पहुंचने में हर संभव मदद करनी चाहिए।

इस सबके अतिरिक्त यह जरूरी है कि मां-बाप और बच्चों के रिश्ते अच्छे हो। आवश्यकता से अधिक दवाब किसी भी बच्चे के लिए नुकसानदायक और तनाव किसी के भी प्रतिभा को मार देता है। अतः बच्चे पर विश्वास रखें और उसे उसकी क्षमताओं के हिसाब से निखरने दें।

बच्चों के हित में ये तमाम बातें जैसे बाल दिवस के आते ही हम बड़ों को विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमें उस हेतु ध्यान केंद्रित करता है जिससे हमारे बच्चे सुखी, स्वस्थ व सुंदर बचपन जी सकें। इस लिहाज से बाल दिवस बहुत खास। मगर यह सफल तब होगा जब अपने बच्चों के साथ-साथ आसपास के बच्चों को भी सुनें और अगर वे दुखी तो उसकी खुशी हेतु हरसंभव मदद करे।

-कुलीना कुमारी

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