धड़कता है दिल तो मैं डरने लगती हूं
मुहब्बत न हो जाय मुझको, सिहरने लगती हूं
मैं मुहब्बत के पचड़े में पड़ना न चाहूं
हो दिलवर के प्यासे, तड़पना न चाहूं
जब कोई घूरता है मुझको, मचलने लगती हूं
मुहब्बत न हो जाय मुझको सिहरने लगती हूं....
फिर प्यार करना न जग को गवारा
ये इतना सताएं, हो दुखमय नजारा
जब कोई बुलाता है मुझको, फिसलने लगती हूं
मुहब्बत न हो जाय मुझको सिहरने लगती हूं....
मेरी हसरत हैं, मैं प्यार करूं ना
गर मैं करूं भी, स्वीकार करू ना
जब कोई छूता है मुझको, बहकने लगती हूं
मुहब्बत न हो जाय मुझको, सिहरने लगती हूं....
-कुलीना कुमारी
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