Saturday 7 January 2017

कामना : पार्ट-5, Desire: Part-5


कामना समझ चुकी थी कि अब घर में रंधीर एक महत्वपूर्ण व्यक्ति तो क्यों ना उस पर ही केंद्रित रहा जाय। जिसमें फायदा, उसी तरफ ध्यान देना बुरा नहीं तो वह भी अपना पिछला प्रेमी मोहन को भूलती गयी और रंधीर पर ही ध्यान देने लगी। रंधीर शायद यहीं चाहता था।
                                                                                                -कुलीना कुमारी, 7-1-2017

Image : Khajuraho


कि एक पहलवान सा व्यक्ति हाथ में बैग लिए घर के तरफ बढा जा रहा है। वह व्यक्ति कामना को देख जोर से आवाज लगायी, ‘भौजी।’ कामना ने उन्हें गौर से देखा तो याद आयी, वह उसका अपना देवर था। चूंकि वह देवर को काफी दिनों के बाद देख रहीं थी तो जैसे भूल गयी थी मगर पुनः की भेंट ने उसकी स्मृति पटल का दरवाजा खोल दिया और वह मुस्कुरायी। बोली, ‘बैठिये-बैठिय।’’ और वह दौड़कर पानी लायी और चली गयी चाय बनाने। सास भी दौड़कर आयी बेटा की आवाज सुन और रंधीर का हाल-चाल पूछने लगी।

रंधीर मनमौजी टायप का व्यक्ति था। जरूरत पर कोई भी काम करने के लिए तैयार रहता मगर मालिक की कोई बात बुरी लगे तो वह वहीं नौकरी छोड़कर आ जाता। फिर काम के साथ दारु की प्रवृत्ति उनकी इस अस्थिरता को बढा देता था। इस सब कारण से रंधीर के बारे में लोगों को निश्चित जानकारी नहीं होती और वे जब आते, अचानक गांव आते। इस बार भी ऐसा ही हुआ।

यद्यपि रंधीर के आगमन ने वातावरण की बोझिलता को थोड़ा कम कर दिया और कामना की सासु मां भी अपने बेटे को देख प्रसन्न हुई। रंधीर मां से मिलते ही उनके लिए लाए कुछ पैसे हाथ में दे दिया जो खर्चा की गाड़ी को चलाने हेतु कुछ और दिन का ऊर्जा मिल गया। उस दिन रंधीर के आने की खुशी में रात का खाना भी अच्छा बना। और काफी समय तक गपशप भी होता रहा।

अगली सुबह जब चाय बनाकर कामना रंधीर को उठाने गयी तो रंधीर ने कामना का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘आप भी अपनी चाय यहीं ले आइए, साथ बैठकर पीते हैं।’ रंधीर यह बात इतना अपनापन से बोला कि वह मना न कर पायी।

कामना रंधीर के चाय के साथ अपनी चाय भी ले आयी और उन्हीं के बगल में बैठकर पीने लगी। रंधीर धीरे धीरे कामना के कंधे पर हाथ रखना शुरू कर दिया अथवा उसके आगे पीछे रहना भी। अब कामना खाना बनाती तो वह पास आ जाता और कामना से विभिन्न विषय पर बातचीत करने लगता। इतना ही नहीं, कामना को लगा कि शायद रंधीर उसका अब ध्यान रखने लगा है क्योंकि सास जब कामना पर गुस्साती, उसे गरीब की बेटी कहती या दान-दहेज नहीं दे पाने के लिए उसके मां-बाप को गाली देती तो रंधीर कामना के पक्ष में खड़ा होने लगा था। यह सब देख कामना को भ्रम होने लगा था कि रंधीर अच्छा आदमी जो उसकी मदद कर रहा है। फिर इन दिनों कामना ने यह भी गौर किया कि रंधीर का अपनी मां के सामने काफी चलता है, उसकी मां एक बार चिल्लाती तो रंधीर उससे अधिक तेजी से चिल्ला उठता। अपने इस बेटे को खुद से भारी महसूस कर सास शायद डरने लगी थी। फलस्वरूप अब रंधीर की बात काफी चलने लगी थी घर में।

इसका फायदा कामना को मिलने लगा था क्यांेकि रंधीर के पक्ष में आने से उसे सास के गुस्सा का सामना कम करना पड़ रहा था तो इस फायदा को सोचकर कामना रंधीर के स्पर्श भरी पहल का विरोध नहीं किया और चलने दिया जैसा रंधीर चाहता। अब एकांत देखकर रंधीर कामना को कभी-कभी चूमने लगा था और कामना उस आनंद को महसूस करने लगी थी क्योंकि वह भी औरत थी और उसे भी पुरुष के साथ की जरूरत थी। फिर रंधीर का कामना की वजह से अपनी मां से लड़ते देख वह उसे अपना दीवाना समझने लगी थी और उसके इस उपकार के प्रत्युŸार में उसकी पहल को बुरा मानना छोड़ दिया था।  अथवा शायद वह मन ही मन रंधीर को चाहने भी लगी थी।
यद्यपि इस बीच एक-दो बार मोहन भी आया मगर रंधीर बॉडी गार्ड के तरह कामना के आगे-पीछे घूमता मिला, जिससे उसे मौका नहीं मिला और वह आना कम कर दिया।
कामना समझ चुकी थी कि अब घर में रंधीर एक महत्वपूर्ण व्यक्ति तो क्यों ना उस पर ही केंद्रित रहा जाय।
जिसमें फायदा, उसी तरफ ध्यान देना बुरा नहीं तो वह भी अपना पिछला प्रेमी मोहन को भूलती गयी और रंधीर पर ही ध्यान देने लगी। रंधीर शायद यहीं चाहता था।

 वह कामना का ध्यान प्राप्त करने के लिए बड़ी-बड़ी या रूचिकर बातें भी करता। लोगों के सामने देश-दुनिया की, प्रेमियों की, शायरों की बातें मगर अपनी मां की अनुपस्थिति पाकर कामना को प्यार और सेक्स की कहानियां सुनाता। उसने अपने जान-पहचान रिश्तेदारों के बारे में ऐसी कई कहानियां सुनाई जो जताती थी कि उस-उसका दूसरे से चक्कर था और अपने पति के अभाव में वह औरत अपने यार से करवाती थी और जिंदगी को मजे से जीती थी। इसी कहानियों के बीच उन्होंने यह कहानी भी बतायी, ‘‘ मेरी दूर की लगने वाली एक भौजी ने मुझसे खुद पहल किया जब उनका पति शहर में रहता था और मैंने उन्हें किया। अच्छे से किया। मेरा बॉडी तो देखती ही है आप, कितना मजबूत हूं। बढिया से करता हूं।’’ शायद यह सब बातें बताकर वह कामना में जोश भरने लगा था ताकि वह भी अपने पति के परोक्ष में  उसके साथ सेक्स को तैयार हो जाय। बावजूद कामना ने खुद से पहल नहीं किया। अलग बात कि रंधीर मौका देख कामना को चुमता, बाहों में ले लेता मगर कामना ने उसे रोका नहीं और जैसा चल रहा था, चलता ही जा रहा था मगर बात वहीं तक सीमित थी।

इसी बीच एक त्योहार आया जिसमें कामना की ननद-ननदोय भी आमंत्रित किए गये। उनलोगों के आने से माहौल और अधिक गर्म हो गया। सास अब अकेली नहीं थी जो रंधीर के दवाब से दब जाती। फिर ननदोय खूब राजनीतिज्ञ। शायद उन्हें झगड़ा लगवाने में  कुछ अधिक मजा आता। इधर सास को उन्होंने चढा दिया कामना के खिलाफ कि उसमें ढेरों कमी-न ढंग से खाना बनाती है, न हरवक्त सर पर पल्लू रखती है और बड़े-बुजूर्ग की जीहुजूरी नहीं करती है। दबाकर रखिये, नहीं तो आगे जाकर पता नहीं क्या करे?’’ चूंकि सास को अपने आप पर काफी दावा था और हमारे समाज में बहू को सबसे कमजोर प्राणी माना जाता है, फिर यह चढाव तो उनके सर पर बैठ गया और बात-बात में वे कामना की बेइज्जती करने लगी।

शायद कामना सह जाती, पहले भी सहती रहीं मगर उसके ननदोय ने उसे अलग से चढा दिया यह कहकर, ‘‘कहां आप और कैसे घर में आके फंस गयी। आपको तो पता ही होगा, कैसी स्थिति घर की? क्या कमाता है मेरा साला जो हर महीने पैसा भी नहीं भेजता व कितनी दिक्कतों में आपको रहना पड़ रहा है, बावजूद इतनी बेइज्जती क्यों सहती है? आवाज उठाइए, नहीं तो ऐसे ही सड़ती रहेगी। आप चिंता न करें। मैं आपके साथ हूं।’’
जब उस दिन सास किसी बात पर विकराल रूप धारण कर लिया और   कामना को बुरा-भला कहने लगी तो कामना चुप नहीं रहीं क्योंकि उसे  ननदोय का प्रोत्साहन मिला था तो वह खुद को ताकतवर समझने लगी और जवााब दिया, ‘‘दिन-रात खटूं तो भी गालियां किसलिए? अगर मेरे में कमी थी तो कहीं और बेटे की शादी कराते। हमारे घरवाले ने तो जबरदस्ती नहीं की थी।’’

कामना का यह जवाब जैसे सास के लिए आग में घी डालने का काम किया क्योंकि अब तक उन्हें सिर्फ चिल्लाने की आदत थी, बहु का जवाब सुनने की आदत नहीं। इस पर सास को इतना गुस्सा आया कि वह सबके सामने ही कामना के ऊपर हाथ उठा दिया। यद्यपि ननद-ननदोय बचाने आए मगर इस घटना का कामना के ऊपर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और सच में ही उसका मन विद्रोह करने लगा। उसे लग रहा था ‘‘चाहे मैंने किसी के प्रोत्साहन से यह जवाब दिया मगर मैं गलत तो नहीं। क्यों सहूं रोज-रोज सास की गाली और ताने और उस दिन वह खूब रोती रही। रोते-रोते उसे उल्टी होने लगी और बार-बार वह उल्टियां करने बाड़ी जाती। मगर कामना तब शॉक हो गयी जब उल्टी होने के दौरान ननदोय ने मदद के नाम पर उसके कपड़े के ऊपर से सीने पर हाथ रखने के बजाय ब्लाउज के अंदर हाथ डाल दिया। तब कामना को एहसास हुआ कि उसके ननदोय की उस पर नजर है और तभी मदद के नाम पर उसका एटेंशन प्राप्त करने हेतु उसे चढाया और अब अपना असली रूप दिखा रहे।

कामना को अपने ननदोय से घिन आई और यह बात वह अपने देवर रंधीर से बताने का फैसला किया। जिस पल रात को कामना रंधीर से यह सब बात बता रहीं थी तो कमरे में सिर्फ रंधीर और कामना ही थे। एक तो रात का समय और एकांत, रंधीर पर कामना का नशा छाने लगा और उसने उसे बाहों में भर लिया। जैसे-जैसे दोनों की सांस टकराने लगी, प्रतिक्रिया भी बढ़ने लगी। वह कामना को बेतहाशा चूमने लगा। कामना के अंदर भी मन था, उसका भी शरीर उसके इस पहल से गरम होने लगा था और इसलिए वह भी उसमें खोने लगी थी। रंधीर का यौवन भड़क चुका था और होंठ को चूमते-चूमते वह नीचे बढ़ता गया। वह  खुद पर नियंत्रण नहीं रख सका और कामना के गले को चूमने के बाद उसे पूरी तरह देख लेने की चाह उसमें तीव्र हो उठी और इसीलिए उसने आगे बढकर कामना के आंचल को हटा दिया। बिना आंचल के कामना के उभार जैसे उसके मर्द को और जगा दिया और कामना के वक्ष पर उसने अपना हाथ रख दिया और ऊपर से ही उससे खेलने लगा। चूंकि कामना मन ही मन रंधीर को चाहने लगी थी तो उसने रंधीर के इस पहल को भी प्यार से जोड़ा और ब्लाउज के ऊपर से ही मगर अपने चाहने वाले का यह स्पर्श जैसे उसमें रोमांच पैदा करने लगा और स्पर्श की कसमसाहट उसमें हावी होने लगी तो वह चुप न रह सकीं और रंधीर को कसकर पकड़ लिया। रंधीर समझ गया कि वहीं नहीं, कामना भी बहुत प्यासी और पानी एक-दूसरे के पास तो काहे रूकना, काहे प्यासा रहना तो वह खुलता गया, खोलता गया।
उसने अब तक सिर्फ ब्लाउज के ऊपर से वक्ष से खेल रहा था मगर अब उसने ब्लाऊज का बटन खोलना शुरू कर दिया। कामना उसके हर एक्टिविटी को महसूस करने लगी और इस पल को जीभर कर जीने की चाह करने लगी। क्रमशः

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