परेशानी यह है कि एक तरफ प्रेम की महत्ता को सब स्वीकारते हैं, माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान, उन्हें प्यार करे। भाई-बहन व सामाजिकता से जुड़े प्यार भी मान्य मगर इसी माता-पिता व समाज के ठेकेदार को जब पता चलता है कि उनकी संतान किसी लड़की या लड़का से प्यार करता है तो जैसे तूफान आ जाती है। प्रेमी-प्रेमिका वाले रूप के लिए समाज में विरोध, आखिर क्यों?
-कुलीना कुमारी
Editorial of month February 2017 |
प्रेम विश्वासपूर्ण व आशा से भरपूर शब्द। यह उस अपनापन समर्पण का नाम कि जहां सर झुक जाता है और जिसे पाने के के लिए कुर्बान होने के लिए हमारा तन-मन-प्राण आकुल हो उठता है। इसी जुड़ाव व परिणति का एक नाम नवजीवन का सृजन होना हैै।
माता-पिता अपने प्यार की परिणति बच्चे से बहुत प्यार करते हैं। उसका लालन-पालन व उच्च संस्कार देते हैं और अपनी संतान को उस मानव मूल्य से ओतप्रोत करते हैं जिससे प्रेम व मानवता के साथ वह जीवन जी सकें।
बच्चा भी दुनिया में आने के बाद अपने मां-बाप व बड़ों के प्यार को महसूस करता है व उसकी ही छांव में बड़ा होता है। उम्र बढने के साथ जिम्मेदारियां बढती जाती है व घर के बाद स्कूल की दुनिया व अपने सहपाठी व दोस्तों से प्यार से रूबरू होता है।
इसी तरह समय के साथ जैसे-जैसे उसके शरीर का विकास व परिपक्वता आती जाती है, अपोजिट सेक्स के प्रति आकर्षण व जरूरत भी बढती जाती है व यह एहसास व इसकी तृप्ति हेतु की जाने वाली कोशिश भी प्यार के ही हिस्से में शामिल। शादी ऐसे रिश्ते की परिणति भी व बिना कानूनी मान्यता के नर-नारी का एक-दूसरे के प्रति झुकाव..प्यार के विस्तृत रूप में शामिल।
इन सचों को जानने-समझने के बावजूद हमारा समाज नर-नारी के प्यार को सम्मानजनक ढंग से नहीं देखता।
आश्चर्यजनक यह भी कि जिस युगल जोड़े ने कभी प्रेम विवाह किया। वे तक अपनी संतान के इस रिश्ते को नाम नहीं देना चाहते। इतिहास गवाह है कि हिंदू-मुस्लिम या अन्य धर्मावलंबी भी इस प्रेम के आगे झुके हैं व जोधा-अकबर जैसे कितने ही जोड़े समाज में जिंदा रहे हैं मगर आज भी प्रेम के मामले में जाति-धर्म के झगड़े।
परेशानी यह है कि एक तरफ प्रेम की महत्ता को सब स्वीकारते हैं, माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान, उन्हें प्यार करे। भाई-बहन व सामाजिकता से जुड़े प्यार भी मान्य मगर इसी माता-पिता व समाज के ठेकेदार को जब पता चलता है कि उनकी संतान किसी लड़की या लड़का से प्यार करता है तो जैसे तूफान आ जाती है। प्रेमी-प्रेमिका वाले रूप के लिए समाज में विरोध, आखिर क्यों? जबकि विचारणीय यह है कि जिस तरह एक वयस्क को मां-बाप व बड़े-बुजुर्ग का साथ व आशीर्वाद चाहिए, कुछ उसी तरह एक वयस्क को अपने तन-मन की तृप्ति के लिए विपरीत लिंगी साथी की जरूरत। फिर इस संबंध पर इतनी बंदिशें ठीक तो नहीं! आखिर कब तक हर वर्ष ऑनर किलिंग के रूप में सैकड़ों हत्याएं होती रहेगी। समाज में प्रेम को लेकर घृणा कब तक रहेगा?
इसी से जुड़ा यह सच कि इतने विरोध के बावजूद यह प्यार खत्म नहीं हो रहा? वह इसलिए कि हमारी प्रकृति भी चाहती है कि नर-नारी के बीच प्यार रहे ताकि न केवल इस वजह से मानव जीवन सृजन हो बल्कि इसलिए भी कि स्त्री-पुरुष एक साथ मिलकर जीवन को बेहतर ढंग से चला पाय। कुछ शोधों से पता चला है कि एक-दूसरे का साथ, प्यार व प्रोत्साहन व्यक्ति की मजबूती में सहायक एकल रहने वाले की तुलना में प्रेमी जोड़े का जीवन अधिक रोमांच व लाभदायक। फिर क्यों ना लोग प्यार में सराबोर रहे।
प्रेम से जुड़े ऐसे विभिन्न सवाल पर पुनर्विचार का नाम वेलेंटाइन दिवस अथवा राधा कृष्ण की कहानियां इससे जुड़ा उत्सव है। कहने को कहा जा सकता है कि क्या साल में एक बार वेलेंटाइन दिवस मनाने से प्रेम को लेकर हिंसात्मक सोच खत्म होगी? शायद नहीं। मगर जागरुकता भरा पैगाम तो जरूर है। या यह उस विश्वास का नाम कि चाहे कुछ भी करो दुनिया वालों, हम प्यार करना न छोड़ेगे। इसमें इतना मजा, लेना न छोड़ेंगे। प्रेमपूर्ण जीना न छोड़ेंगे। इसी प्यार, विश्वास व उद्घोष के साथ सभी प्रेमियों को वेलेंटाइन दिवस की शुभकामनाएं ।
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