बसंत के आते ही चारो तरफ धरती के कण-कण, जर्रे-जर्रे में प्रेम बसने लगता हैं। हर दिल तितली के समान चंचलता से भर जाता है और हर फूल को किसी भंवरे का इंतज़ार करता रहता है।
अनुराधा कनौजिया |
बसंत पंचमी माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी में मनाया जाने वाला त्योहार हिन्दू धर्म के लिए एक विशेष महत्व रखता है। इस दिन विद्या और संगीत की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। माँ सरस्वती का संबध बुद्धि से हैं, ज्ञान से हैं। कहते हैं यदि आपके बच्चे का मन पढ़ाई में नहीं लगता और आप निराश हो रहे है तो माँ सरस्वती कि पूजा करवानी चाहिए ताकि माँ का आशीर्वाद मिल सके। यह पूजा पूर्वी भारत के उत्तर दिशा, बिहार और पश्चमी बंगाल और भी कई राज्यों में बहुत हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसी दिन होली का पहला गुलाल भी उड़ाया जाता है। इस दिन के ठीक 40 दिन बाद होलिका दहन की जाती है।
बसंत को ऋतुओं का राजा भी कहा जाता है क्योंकि यहीं वो समय होता है जब पञ्च तत्व अपना पूर्ण रूप से अपना असर दिखाता है। बसंत ऋतू आते ही आकाश एक दम स्वच्छ हो जाता हैं, अग्नि रुचिकर तो जल निर्मल सुख दाता और धरती उसके रूप के तो कहने ही क्या, वह तो मानो किसी दुल्हन के समान अपने सोंदर्य का बखान कर रही हो और उसी का सहारा लेते हुए हवाओ के भी रुख बदल जाते हैं। सोंधी-सोंधी सी खुशबू से मन रोमांचित सा होने लगता है। इतना ही नहीं, कहते हैं कि इसी दिन रति और कामदेव का भी धरती पर आगमन होता हैं। ऐसा लगता है जैसे बसंत ने सभी कलियों का घूँघट एक साथ खोल दिया हो। इसीलिए बसंत की मादकता सिर्फ सरसों के खेत में ही अपनी छटा नहीं बिखेरती है। या यूँ कहना चाहिए के बसंत के आते ही चारो तरफ धरती के कण-कण, जर्रे-जर्रे में प्रेम बसने लगता हैं। हर दिल तितली के समान चंचलता से भर जाता है और हर फूल को किसी भंवरे का इंतज़ार करता रहता है।
sweet period of spring |
प्रेम के रंग में हर दिल सराबोर होने लगता है। पत्ता-पत्ता ओस की बूंदों मे लिप्टा हुआ प्रतीत होता है। चारो तरफ देखते ही लगता है कि बसंत का असर सभी पर पूर्णरूप से हो रहा हैं। देखते ही लगता है कि जैसे प्रकृति के सर्जन का काम जोरों पर चल रहा है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, नर-नारी सभी प्रेम रंग में डूबे हुए बसंत का आनंद लेते हुए प्रतीत होते हैं। बल्कि नव युवकांे के मन का श्रृंगार भी करती है। जैसे आम के पेड़ पर नई भौरें आने लगती है। वैसे ही नव यौवन के मन में भी साजन का प्रेम पाने को मन लालायित रहता है। साजन के रंग में रंगने को दिल बेचैन रहता है। जितने फूल धरती के सीने पर खिलते हैं, उस से कही ज्यादा तो प्रेमी और प्रेमिका के मन मे खिल जाते हैं।
जैसे कह रही हो-
मेरे रोम रोम में तुम समां से गए हो
आज कल मुझे साजन के सिवाए
कुछ याद नही रहता
बस मैं और मेरे साजन
तुम्हारे आने से मेरे सुने जीवन में
फिर से बहारें आ गई है
सुनो तुम मेरे बसंत बने रहो !
और मैं ! तुम्हारी ऋतू बन जाऊं।
साजन के लिए सजना संवरना और,
तुम से भी नाजुक बन जाऊ,
अपने प्रीतम के समक्ष
वो भी मुझे पाने को बेकरार हो जाये,
अपने वजूद को मुझ पर लुटाने के लिए,
मैं भी अपना सारा प्रेम तुम पर न्योछावर कर दूँ।
हर प्रेमी प्रेमिका बसतं का आनंद लेते हुए इस बात से भी डरता है कि बहुत ही जल्दी बसंत अपना हाथ छुड़ाकर पतझड़ के टूटे हुए पत्ते के समान तडपता हुआ छोड़कर कही वादियों में गूम हो जायेगा। बसंत रुपी प्रेमी भी अपनी प्रेमिका के मन की बात को समझते हुए एक सच्चे प्रेमी की तरह ये वादा करता है कि बहुत ही जल्दी वो सावन के रूप में फिर से अपनी छटा बिखेरने जरुर आएगा, बस उस वक्त मेरा नाम सावन होगा। फिर क्या.. ऋतू रुपी प्रेमिका अपने साजन का फिर से इंतजार करने लगती हैं एक नए जोश के साथ....।
-Published by Mahila Adhikar Abhiyan in the month of February 2017
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