करवा चौथ, तीज या कोई भी सुहाग से जुड़ा पुरुष प्रधान व्रत जो महिला द्वारा किया जाता है, वह पुरुष को देवता मानने की कम धारणा मगर खुद के प्रति प्यार जताने का अधिक जरिया है। यह व्रत उस ईश्वर के प्रति आस्था व धन्यवाद देने का अधिक प्रतीक जो उन्हें जीवन में पति या प्रेमी के साथ का संयोग देकर उसके पेट की ही नहीं, जिस्म की जरूरत भी पूर्ण करना संभव बनाता है।
पति तो सामाजिक प्रतिष्ठा व हर प्रकार के साज-श्रृंगार का अधिकारी पत्नी को बनाता है तो यह व्रत उसे कायम रखने की चाहत के रूप में। वरना पढी-लिखी व विज्ञान के युग में पली स्त्री इतनी मूर्ख नहीं कि कथा-पूरान के अतार्किक बात को माने। सब समझती है स्त्रियां, बस पुरुष अपने नाम के पूजा के नाम पर खुश होता है तो पूजा-व्रत के दिन महिला भी खुद के अतार्किक होने का ढोंग कर लेती है..यह भी परंपरा, पूजा-आस्था का एक बड़ा सच। वरना अच्छे से समझती है महिलाएं कि बात-बात पर चिल्लाने वाला, अपने सामने किसी और को नहीं समझने वाला और मालिक के तरह स्त्री को जूते के नोंक पर रखने वाला पति नफरत के काबिल होता है...प्यार के तो हर्गिज नहीं, ऐसे पुरुष को तो स्त्री देवता कभी नहीं मानती, मान ही नहीं सकती..उस लायक भी हो मर्द कि उसके प्रति देवता जैसा सम्मान मन में आ पाय।
प्रतिकात्मक चित्र |
बावजूद महिला व्रत करती है क्योंकि किसी भी व्रत के नाम पर अपने आराध्य से अपना घर, बच्चों की सुरक्षा व सच्चा प्यार करने वाला मर्द की चाहत करती है औरत। वह मर्द कोई भी हो सकता है, पति या कोई बाहरवैया। इसी में महिला का सुख और इस सुख के लिए कितनी ही प्रकार की नौटंकी महिला करती है और यह गलत भी नहीं...। क्योंकि बाहर की दुनिया से अलग अंतर की भी दुनिया और किसके अंतर में कौन बसता है, यह तो उसका मन ही जाने। फिर अपने सपने, अरमान व सुख के लिए अध्यात्म के तरह झुकाव भी मनुष्य का स्वभाव रहा है, तभी अधिकतर पुरुष भी आस्तिक, बेशक पत्नी के लिए व्रत न रखे मगर किसी न किसी वजह से ईश्वर को वो भी नमन करते हैं। इसके रूप अलग, समाज के हिसाब से इसका दिखावा भी अलग मगर उद्देश्य अपना सुख ही है, हरेक का अपना सुख।
यद्यपि जब-जब पुरुष प्रधानता वाला व्रत-त्योहार आता है, तब-तब यह सोच भी सक्रिय होती है कि क्या पुरुष सच में महिला से महान, इसलिए उसके नाम पर महिलाओं को व्रत-त्योहार मनाना चाहिए तो दो-तीन अर्थों में शायद सच। आज भी महिलाओं की एक बड़ी संख्या पुरुष की कमाई पर निर्भर, पुरुष लड़ाकू भी खूब और भारी व मजबूत शरीर की वजह से वह अपने प्रिये स्त्री के रक्षा करने या उसके लिए लड़ने में माहिर, तीसरा वह यौन कार्य के दौरान मिहनत भी अधिक करता है तो इस सबकी वजह से अगर महिला पुरुष को बड़ा समझे व इस व्रत-त्योहार के नाम पर उसके लिए श्रद्धा दिखाए तो गलत नहीं। बॉडी गार्ड तो हर महिला को पसंद, उसके मुस्कान व इशारों पर कोई कुर्बान होने को तैयार रहे...ऐसा बंदा भला किसको नहीं चाहिए।
अतः त्योहार के दिन अगर महिला पतिव्रता बन भी जाती है तो इन छुपे मंतव्य के अलावा भी व्रत से कई लाभ जैसे नवका साड़ी व हैसियत के हिसाब से भेंट मिलना, पूजा-पाठ के अतिरिक्त अच्छा खान-पान व साज-श्रृंगार के प्रयोजन के साथ खुद को सुंदर दिखाने का माध्यम भी यह बन जाता है। अगर व्रत-त्योहार न होता तो इस विशेष दिन महिलाएं सजती भी कैसे, कभी-कभी तो सामान्य से खास लगने वाला कुछ दिन हर वर्ष होना ही चाहिए। इस व्रत-त्योहार के वजह से ही सही, पत्नी से दूर पति या प्रेमी भी साथ के विधान की वजह से पुनः पुनः पास आ जाता है और फिर प्यार, सुख व संतुष्टि का खेल भी संभव बनना आसान हो जाता है। अतः वजह कोई भी हो, तरीका कोई भी हो, इस व्रत-त्योहार का मतलब सुख ही है।
-कुलीना कुमारी, 19-10-2016
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