
एक स्त्री को क्या चाहिए
खाने को अन्न
पहनने को वस्त्र
सर पर छत
मगर इतना ही तो काफी नहीं
परिवार का साथ भी तो जरूरीकैसा परिवार का साथ
कहने को पति या साथी हो एक ही छत के नीचे
मगर सामंजस्य ना हो
तो क्या स्त्री खुश रह सकती है
नहीं, हर्गिज नहीं
मनुष्य जीवन की उम्मीद और उत्साह
अपनों द्वारा जताए प्रेम
और अपनापन में ढूंढता है
हां कितनी ही बार अपने मन में झांक कर देखा है
कितनी ही महिलाओं के जीवन
व दर्द गाथा को सुन कर पाया है
वह सबसे खुश तब होती है
जब उसे ये एहसास होता है
कि कोई उसको चाहता है
उसके सोच को, उसके जिस्म को
उसके हर रूप को
हां उसे नेचर द्वारा गढे अपने शरीर पर तब गर्व होता है
जब उसे विश्वास होता है
कि किसी को उसकी जरूरत है
कोई उसका इंतजार करता है
मगर यह भी पूरा सच नहीं
वह खुलना चाहती है
अपने उस पति, प्रेमी या मरद से
जो उसे सुनना पसंद करता है
उसके लिए भेंट और अपनी क्षमता के अनुरूप
उसे खुश करना जानता है
स्त्री ही क्यों, शायद हर मनुष्य की ये जरूरत है
पेट की भूख और जिस्म की भूख
जब दोनों ही चीजें
व्यक्ति को प्रेम और अधिकार के साथ मिलता रहे
तो जीवन की सार्थकता लगती है
एक भी चीज की कमी
जीवन की अपूर्णता को जन्म देती है
कितनी ही बीमारियों का कारण यह
धीरे-धीरे मनुष्य टूटने लगता है
और फिर बढ़ने लगता है मौत या अंधकार की ओर...
-कुलीना कुमारी, 16-10-15
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