कब से आप मिले नहीं
की नहीं है बात
खाली-खाली मैं लगूं
खाली लगे दिन-रात
कहीं आपके बिना मैं अधूरी तो नहीं
अंखियां प्यासी-प्यासी क्यों हैं
ये जिया मेरा तड़पता क्यों है
कब से आपने छुआ नहीं
अपनापन जताया नहीं
कहीं ‘उसके बिना’ कुछ कमी तो नहीं...
अब हंसने की वजह नहीं
उत्साह भी मुझे नहीं हो
जिंदा तो हूं मगर
जिंदादिली नहीं हो
मेरा मन बुझा-बुझा क्यों है
कहीं आपके लिए ये नमी तो नहीं..
न अब अल्हड़पन मुझमें
न चंचलता ही छाए
कि आप हमसे दूर है
खुशी का रंग ही नहीं आए
मेरे मन में ये अंधेरा क्यों है
कहीं आपके बिना ये भटकाव तो नहीं...
-कुलीना कुमारी, 8-11-2016




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