अगली सुबह कामना उठी तो उसके होंठों पर हंसी थी। उसे रात की बात याद आने लगी और यह सोच उसे सुकून देने लगी कि कोई उसे प्यार भी करता है... |
Image : Curtesy by Khajuraho
इधर रंधीर धीरे-धीरे अपना प्रयास बढ़ा रहा था अथवा वह अनाड़ी सा, उसे बटन खोलने में समय लग रहा था। कामना बहुत बेचैन हो रही थी, जैसे चाहती हो कि यह प्यार का खेल जल्द से जल्द से शुरु हो और उसका सुख वह पाती ही रहे। थोड़े प्रयास के बाद रंधीर ने ब्लाऊज खोल दिया। इस पहल से तत्काल कामना तो शर्मा गयी मगर कामना के गोरे-गोरे व गोल-गोल वक्ष देख रंधीर जरूर बेशरम होने लगा। वह पहले तो उसके वक्ष को प्यार से छुआ और थोड़ी देर तक सहलाता रहा व फिर उसपर अपना मुंह लगाने से खुद को नहीं रोक सका। वह ऐसे उसके वक्ष को पीने लगा जैसे दुनिया की अमृत उसी में और उसे पूरी तरह से पीकर तृप्त होना चाहता हो। जैसे-जैसे रंधीर कामना को प्यार करने लगा, कामना के अंदर उत्तेजना व प्यास बढने लगी और वह चाहने लगी कि आज रंधीर उसे छोड़े नहीं, उसे ‘करे’, ‘करता’ ही रहे व बिना प्यास बुझाए माने नहीं। कामना ने साथ देना शुरु कर दिया व जैसे ही उत्तेजना में चूर हो कामना ने रंधीर के विशेष पार्ट को चूमा, वह और उत्तेजित हो बैठा और...और...
अगली सुबह कामना उठी तो उसके होंठों पर हंसी थी। उसे रात की बात याद आने लगी और यह सोच उसे सुकून देने लगी कि कोई उसे प्यार भी करता है, उसमें भी रंधीर जैसा पहलवान सा व्यक्ति, जिसमें ऊर्जा भरपूर। यद्यपि यह एहसास उसे जरूर हुआ कि उसने रंधीर का साथ देकर अच्छा किया है कि नहीं मगर अपनी इस सोच को इसलिए विराम देना चाहा कि रंधीर तो उसका चाहने वाला, फिर साथ देने या लेने में बुरा तो नहीं मानना चाहिए।
चूंकि उस दिन उस पर प्यार व सेक्स की ताजगी छायी हुई थी तो कुछ अधिक प्रसन्न हो काम करने लगी। मगर यह प्रसन्नता उसकी जल्दी ही खत्म हो गयी जब उसे एहसास हुआ कि रंधीर अब तक शायद उसका शरीर पाने के लिए उसके प्रति भलमानसता की एक्टिंग कर रहा था, जैसे ही रात में वो सबकुछ हुआ, उसने अपना असली रंग दिखाना भी शुरु कर दिया।
हुआ यह कि उसकी सास ने कामना से एक नयी साड़ी मांगी। कामना ने अपनी साड़ी देने से यह कहते हुए मना कर दिया कि मेरे पास गिनी-चुनी साड़ियां ही मायके की, मैं नहीं दे सकती।
कामना के इस बात पर सास जोर-जोर से चिल्लाने लगी कि बहू होकर कामना ने मना कैसे किया। अपनी मां की चिल्लाहट जैसे ही रंधीर सुना,
वह भी बोलने लगा, ‘‘ मां, इसकी पेटी का ताला तोड़कर जो भी चाहिए, निकाल लो ना। जो औरत बड़े-बुजूर्ग को मना करे, सास को मना करें, ऐसी औरत का तो हाथ-पैर तोड़ देना चाहिए। मेरा भाई नालायक है, बोझ है, मूर्ख है जो इसे रखना पड़ रहा है वरना कब का ऐसी औरत को लात मारकर भगा देता।’’
कामना ने जब रंधीर का अपने प्रति यह भाव देखा तो जैसे शॉक हो गयी। उस दिन कामना को महसूस हुआ कि सच में इस घर के सबलोग खराब और रंधीर छीः! उसने मुझे छुआ और मैंने छूने दिया। घीन आने लगी उसे खुद से। साथ ही सबके प्रति मन में विद्रोह भर गया। फिर उस दिन भी उसे बहुत रोना आया मगर इसी के साथ आदर और सम्मान की भावना भी ससुराल के प्रति जो भी थी, कम होता गया।
कामना ने रंधीर से बात करना छोड़ दिया व यह देखकर रंधीर कामना के प्रति और दुर्व्यवहार करने लगा। इसी बीच मोहन के यहां कोई उत्सव था जिसमें सपरिवार आने के लिए बोला गया था। सास ने कामना को भी जाने हेतु तैयार होने के लिए कहा। कामना तैयार भी हुई मगर साड़ी उल्टा पल्ला लिया था। कामना का ससुराल बिहार के नामी गांव के रूप में जाना जाता था व काफी विकसित था। कामना की पितियौत दियादनी भी उल्टा पल्ला लेती थी मगर सास के अंदर दकियानूस सोच हावी थी। उन्होंने कहा, ‘‘उल्टा पल्ला लेकर नहीं जा सकती’’ कामना सास की बात मान सीधा पल्ला ले भी लेती मगर इन बातों के बीच ही रंधीर ऐसे चिल्लाते हुए कामना के तरफ आया कि सीधा पल्ला अगर तुरत नहीं लिया तो मारने लगेगा। बहुत डर गयी उस दिन कामना और उससे बचने के उद्देश्य से वह तत्काल दूसरे कमरे में घुस गयी।
दिनोनदिन कामना के लिए जीना मुश्किल हो रहा था। पहले सिर्फ सास चिल्लाती थी, अब रंधीर भी ऐसे चिल्लाने लगा था जैसे कामना उसी की औरत है, उसका खर्चा चलाता है। उसके साथ कैसे भी दुर्व्यवहार कर सकता है। रोज-रोज यह सब देख व महसूसकर कामना के अंदर विद्रोह की ज्वाला भड़कने लगी थी मगर उसके पास विकल्प नहीं था और चुपचाप जीने की कोशिश कर रहीं थी।
त्योहार बीत चुका था। उसके बाद कामना के दो छोटे भाई आए रिक्शे पर काफी सारा सामान लेकर, उस वक्त दोनों भाइयों की उम्र करीब 9 साल व 11 साल थी। कामना के मायके और ससुराल में करीब 15 किलोमीटर की दूरी थी और आगामन की सुविधा भी अच्छी नहीं। इतनी दूरी पार कर छोटे भाइयों का आना ही कामना के लिए बड़ी बात थी। मगर ससुराल वालों ने कामना के भाइयों की उम्र तक नहीं देखी। त्योहार बीत जाने पर क्यों सामान लेकर आया, इसको मुद्दा बनाकर सास चिल्लाने लगी और उनदोनों को घर में प्रवेश करने से रोक दिया।
सास की चिल्लाहट के बाद न रंधीर कुछ बोला और न ननद-ननदोय।
कामना के लिए अब बर्दाश्त के बाहर हो गयी। वह भाई-बहनांे में सबसे बड़ी थी और मां-पापा के बाद शायद भाई-बहनों से सबसे अधिक स्नेह करती थी। अपनी बेइज्जती वह अब तक सहती रहीं थीं मगर यह बेइज्जती उसे सबसे ज्यादा भयानक लगी। जब दूर से कामना ने अपने भाइयों की रोनी सूरत देखी तो जैसे सारे लाज-लिहाज उसके अंदर से खतम हो गया। वह घर से बाहर आयी और जोर से चिल्लायी, ‘‘अब तक मेरी बेइज्जती हुई, सह लिया। मगर मेेरेे छोटे भाईयों की अगर बेइज्जती की गयी तो यह घर मेरे लिए भी पराया। मैं इस घर से अभी निकल जाऊंगी अगर मेरे भाइयों को घर में घुसने नहीं दिया गया और अपमानित करके विदा किया तो। कामना का शरीर अत्यधिक गुस्से से थरथर कांपने लगा था।
अब तक ससुराल वालों की चिल्लाहट व दुर्व्यवहार पर चुप रहने वाली कामना का जब यह रूप उनलोगों ने देखा तो जैसे पुनर्विचार करने लगे और सबसे पहले आगे बढकर ननदोय गये और कामना के भाइयों को सामान के साथ घर ले आए। वह दिन जैसे-तैसे बिता मगर सास ने जैसे तय कर लिया था कि जुल्म सहने वाली बहू ही उनको चाहिए, कामना के तरह जुल्म का प्रतिकार करने वाली नहीं। उसके भाइयों को कामना के पिता को आने के लिए सूचना दे दी गयी थी।
जिस दिन कामना के पिता आए, कामना की विभिन्न बुराइयां बताकर उसे ले जाने के लिए बोल दिया गया। कामना इस बात से इतनी दुखी नहीं हुई कि सास, देवर या ननद-ननदोय ने उसके बारे में बुरा-भला क्यों कहा, बल्कि यह बात उसे खूब कचोटा जब उसके अपने ही पिता ‘‘ससुराल में ठीक से क्यों नहीं रही, क्यों चुपचाप हमेशा सबको सुनती नहीं रही’’ जैसी शिकायतों के लिए उन्हीं लोगों के बीच कामना पर डांटने लगे। कामना यह सोचकर और दुखी हुई कि उसके अपने पिता भी अपनी बेटी को नहीं समझ पाय, उसका पक्ष नहीं रख पाय। ऊपर से उनलोगों के बीच ही उसे डांट लगादी।
हमरा मन उससे बहुत दुखी होता है, जो अपना हो व जिससे उम्मीद ज्यादा हो, पराये के दुर्व्यवहार उतना पीड़ित नहीं करता, जितना अपनों का।
अपने पिता की डांट की वजह से कामना के आंसू रूक ही नहीं रहे थे मगर फिर उसे ध्यान आया, ‘‘ उसके पापा बहुत भोले और फिर ससुराल के इतने सारे कामना के खिलाफ बताने व चढाने वाले। कहां उनका दिमाग काम किया होगा। फिर कामना ने खुद को नियंत्रित किया और सास व ससुराल वालों ने कामना को उसके सामान के साथ उसके पिता के साथ विदा कर दिया।
कामना अब मायके में थी। उसे अब अधिक काम भी नहीं करना पड़ रहा था मगर यह आराम उसके भविष्य की चिंता को नहीं मिटा पाया। बल्कि यह और बढ़ने लगी थी क्योंकि उसे अब ससुराल जाना नहीं था। पति ने उसे अपने साथ नहीं रखा, इसीलिए ससुराल में उसकी ये दुर्दशा हुई, इस कारण वह अपने पति से भी गुस्सा थी। फिर जीवन कैसे गुजारे? उसके मां-बाप भी अमीर नहीं थे, ऊपर से उसकी दो छोटी बहने अभी कुंवारी थी। माता-पिता को तो सभी की जिम्मेदारी थी, वह भी जिम्मेदारी बन जाय..हर्गिज अच्छी बात नहीं लग रही थी उसे मगर समय बीत रहा था किंतु कामना को इससे निकलने का रास्ता नहीं मिल रहा था।
इस बीच कामना के मायके में आने के बाद उसके घर में (रिश्ते में भाई लगने वाले ) एक व्यक्ति का आगमन कुछ बढ़ गया था। वे जब-तब कामना का साथ पाने की कोशिश करते और बताते...बचपन में कामना कैसी लगती थी, किस तरह से रहती थी और अब...। चूंकि स्वभावतः कामना मिलनसार थी और उसपर से उससे जुड़ी बातें, वह भी अपने भाई लगने वाले पलाश की बातों में रूचि लेती और बातचीत का लम्बा दौर रोज ही चलने लगा।
एक दिन जब बातचीत का दौर कामना के यहां चल रहा था तो कामना से पलाश ने कहा, ‘‘कल मेरे यहां आओ कामना, चाय कब से तेरे यहाँ पी रहे, कुछ हमारे यहाँ भी हो जाय।’’
कामना ने इसे सहज रूप में लिया और अगले दिन वह फुरसत मिलने पर पलाश के यहाँ चली गयी।
जब कामना पलाश के यहाँ पहुँची, उस वक्त संयोगवश पलाश की मां, यानी काकी घर पर नहीं थी। कामना यह समझते हुए बोली, ‘‘आप हमारे यहाँ ही आ जाइए।’’ और यह कहते हुए वह जाने को वापस हुई तो पलाश ने उससे निवेदन किया, ‘‘ थोड़ी देर रुको ना, फिर चले जाना... मां आती होंगी, मिलकर जाना।
कामना इस आग्रह पर रुक गयी और वहीं बरांडे पर स्तिथि चौकी पर बैठ गयी। पलाश ने कहा, ‘‘मैं तुमसे एक जरूरी बात करना चाहता था।
‘‘बोलिये ना’’ कामना बोली।
‘‘तुम्हें पता है, तुम बहुत सुंदर हो’’
‘‘तो क्या हो गया, मैं आपकी बहन, अपने लोग सुंदर ही लगते हैं।’’ कामना (अपनी तारीफ से प्रशन्न हो) हंसते हुए बोली
‘‘सिर्फ इतनी बात नहीं कामना’’
‘‘तो कितनी बात, बताइएगा तो समझ में आएगा ना’’
‘‘मैं तुम्हारी सुंदरता में खोना चाहता हूं और चाहता हूं कि तुम भी मुझे महसूस करो।’’
‘‘क्या मतलब’’ कामना ने जोर देकर पूछा ताकि समझना चाहती हो उनका असली मंशा।
इस प्रश्न पर पलाश खिसककर कामना के पास आ गया व उसका हाथ पकड़कर बोला, ‘‘ मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं और अब तुम्हें पाना चाहता हूं। दरअसल तुम मेरी नस-नस में बस गयी हो। दिन में ही नहीं, रात में भी मैं सपना देखता हूं तो वो भी तुम्हारा..तुम्हारे साथ ‘वो’ करते हुए। सुनो ना, तुम अकेली, पता नहीं पति तेरा कब आएगा, आएगा भी या नहीं और मैं भी शादीशुदा नहीं..‘सेक्स’ की बहुत चाह मुझे, देदो ना’’ और...क्रमशः
-कुलीना कुमारी, 25-1-2017
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Wednesday, 25 January 2017
कामना : Part-6, Desire :Part-6
About Mahila Adhikar Abhiyan (महिला अधिकार अभियान के बारे में ...)
महिला-पुरुष जीवन के पहिये के दो मुख्य धुरी हैं और परिवार व देश के विकास के लिए दोनों का मजबूत रहना आवश्यक है। लेकिन आज भी महिलाएं कई स्तरों पर पीड़ित हैं, इस बात में दो राय नहीं! यह पत्रिका 'महिला अधिकार अभियान' 2010 से महिलाओं केे पारिवारिक, सामाजिक और वैचारिक मुद्दों को एक मंच प्रदान करने के रूप में सक्रिय है। आप सबकी प्रतिक्रिया, सहयोग हर रूप में हमारा उत्साहवर्धन करता है, इसलिए अपना कीमती सुझाव अवश्य दें!
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