Sunday 27 November 2016

कामना भाग-2, Desirous Part-2

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क्या करे, क्या करे, इस विषय पर सोचती ही जा रही थी कामना मगर उसको इसका हल मिल ही नहीं रहा था। इस सोच व बेचैनी के क्रम में रोटी बनाते वक्त उसका हाथ जल गया। सास को पता चला तो गुस्सायी और बोली, ‘‘काम करते वक्त कहां ध्यान रहता है जो हाथ जल गया।’’ वह ये बात इतने जोर से बोली कि बगल में स्थित कामना के पितिया सास के परिवार को सुनाई पड़ गया। वैसे भी कामना की सास व पितिया सास के परिवार में विभिन्न मतभेदों के बावजूद आपस में काफी लगाव था और दोनों परिवार एक-दूसरे के दुख-सुख में काम आते थे।

जिस दिन कामना का हाथ जला था, संयोगवश उस वक्त पितिया सास का एक दमाद भी आया हुआ था। जैसे ही उन लोगों को कामना के हाथ जलने की बात सुनाई पड़ी, पितिया सास और पितिया ननद व ननदोई सब कामना को देखने आएं। पितिया सास व ननद तो जल्दी देखकर चली गई मगर कामना की खातिरदारी हेतु और उनसे कामना का मजाक का रिश्ता रहने की वजह से वे थोड़ी देर ठहर गये। सास ने तो जले हुए भाग पर पहले कुछ घरेलू दवाई लगा दी थी मगर ननदोय ने एक बच्चे को पैसा देकर यह कहते हुए दवा बाजार से मंगवाने के लिए भेज दिया था कि इससे जल्दी हाथ सही हो जाएगा। कामना के हाथ जल जाने पर सास किचेन का काम देखने लगी। दवा आ जाने पर ननदोय ने बड़े प्यार से कामना का हाथ छुआ, शायद सहलाने वाला अंदाज से। उन्होंने दवा लगाने के नाम पर कुछ अधिक देर कामना का हाथ पकड़े रहे। कामना समझ गई कि उनकी मंशा क्या है मगर कुछ जतायी नहीं।

यद्यपि कामना अधिक सुंदर नहीं थी मगर कम भी किसी से नहीं थी। उसे साज श्रृंगार का अधिक शौक नहीं था मगर उसकी बातों में वो सरलता होती कि लोग उसमें बह जाना चाहते। जब वह प्यार से किसी को देखती तो उसकी आंखों में डूबने के लिए लोग बेकरार हो जाते। उसमें कुछ ऐसा था कि लोगों को वह अपने पास खींचता। फिर वह कुछ भी बोलती आत्मविश्वास से और बिना डरे और यह अंदाज भी लोगों को पसंद आता। हो सकता है, पुरुष वर्ग उसे देखकर सोचते हो कि उसका स्वभाव ऐसा तो जरूर प्यार का अंदाज भी कुछ लाजवाब होगा। वजह जो भी हो, मगर उससे जो भी एक बार मिल के जाता, वह कामना को शायद भूल नहीं पाता। शायद इस वजह से उसके यह ननदोयश भी हो सकता है, भूला न पाए हो।

अपने इस ननदोयश से कामना दुबारा मिल रहीं थी। पहली बार तो  उसे यह समझने में थोड़ा समय लगा कि वह 20 वर्ष की और उसका पितिया ननदोयश 60 साल का मगर ससुराल की रिश्तेदारी में दोनों के बीच मजाक का रिश्ता। मगर दुबारा की यह भेंट मजाक के रिश्ते को उसे अच्छे से समझा दिया। उसके ननदोयश जब तक कामना के यहां रहे, अपनी नौकरी व उपलब्ध्यिों पर चर्चा करते रहें। अपनी विशेषताओं पर बात करते रहें, शायद कामना को प्रभावित करना चाहते थे। कामना को अगर यह अच्छा नहीं तो बुरा भी नहीं लग रहा था मगर वह अपने तरफ से उन्हें लिफ्ट नहीं देना चाहती थी। वह सोच रहीं थी, ‘‘ठीक है, मुझे भूख लगी है, मेरे शरीर को एक प्रेम करने वाला और अच्छे से प्यार करने वाला मर्द चाहिए, मगर इस बुड्ढे से मेरा क्या होगा...जब कुछ होना नहीं तो लिफ्ट का फायदा ही क्या है?’’ यहीं सब सोचकर वह सर्द प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही थी।

किंतु उसके वह ननदोयश विशेष कामना अपने अंदर भर लिए थे। उस रात उन्होंने ससुराल में ही रूकने का प्लान बना लिया व इसे साकार रूप देने के लिए रात के खाने में अपने तरफ से वो मछली मंगा दिए थे। जिसे पितिया सास के घर में ही बनाया गया और मछली का भोजन कामना के लिए भी भेज दिया गया। सास के लिए दिन का खाना बचा हुआ था, सास ने कहा कि वह वहीं खा लेंगी। फिर कामना का हाथ जला था तो  उस रात को खाना बनाने की छुट्टी हो गई।

रात में भोजन करने के बाद पहले के तरह गेस्ट के सोने का इंतजाम कामना की सास के यहां हुआ। चूंकि पितिया सास के यहां अतिरिक्त कमरा नहीं था, तो पहले भी कोई अतिरिक्त व्यक्ति आता तो उनके ठहरने का इंतजाम कामना की सास ही करती।

रात में ननदोयश के लिए सोने का बिछावन लगा दिया और इसके बाद जब कामना जाने लगी तो ननदोयश ने जिद की, ‘‘ थोड़ी देर मेरे पास ही बैठकर बात करिये ना, बाद में सोने चले जाइएगा।’’
‘‘ठीक है,’’ यह कहते हुए कामना गपशप करने लगी।

सास को जल्दी सोने की आदत थी तो वह दूसरे कमरे में जाकर सो गयी।
उसके ननदोयश यह बात समझ चुके थे और कामना से खुल कर बात करने लगे। उन्होंने कहा, ‘‘मेरा साला इतने दिनों से गायब है, कैसे रात काटती है? इच्छा नहीं होती! मैं तो आपकी ननद के बिना रह नहीं सकता। मुझे तो ‘वो’ रोज चाहिए।’’

‘‘क्या कर सकते हैं?’’ कामना भी यहीं चाहती थी कि उसे रोज मिले और जब यह बात उसके ननदोयश ने कहा तो उसके मुंह से अचानक यह आह निकल गई।

जैसे उसके ननदोयश यहीं सुनना चाहते थे। उन्होंने कामना का हाथ पकड़ते हुए दूसरा तीर छोड़ा, ‘‘ कितनी सुंदर हो आप और यह मस्ती करने वाली जवानी की उमर। इसे ऐसे जाया न करो। बेवकूफ है हमारा साला जो इतनी खूबसूरत बीवी को अकेला छोड़कर गया है मगर गलती उसकी तो आप खुद को क्यों सजा दो। कभी कुछ प्यार से मिले तो उसे ग्रहण कर लो। नहीं कुछ से तो कुछ बेहतर। और यह कहते हुए वे कामना को चूमने लगे। कामना को प्यास थी और जब ऐसी बात वह सुनी तो लगा कि सच में यह बुरा नहीं। गोलू से बनाए संबंध भी उसे अब बुरा नहीं लगा और पेट के भोजन के तरह ही जवानी की प्यास बुझानी भी उसे जरूरी लगने लगी।
इधर उसके ननदोयश वृद्ध अवस्था में जवान कामना का सुडौल शरीर छूकर जैसे समझ ही नहीं पा रहे थे कि क्या करें, क्या न करें। कभी वे उसका होंठ चूमते, गरदन तो कभी उसके वक्ष में खोने लगे। कामना में भी उनके चुंबन से शरीर में अजीब सी कसमसाहट पैदा होने लगी तो उसने विरोध नहीं किया। मगर यह क्या, शायद इतने में ही उसके ननदोइश का पुरुषार्थ खतम हो चुका था या वे डर चुके थे। वह ढीले पड़ गये और कामना यह बात समझते ही अपने ब्लाउज को ठीक करती हुई अपने बेडरूम में सोने चली आई।

अपने कमरे में आने के बाद उसे खुद पर बहुत गुस्सा आया।  वह जैसे पछताने लगी कि उसने ऐसे बुड्ढे पुरुष के पास बैठी ही क्यों, जिसमें मर्दानगी खतम हो चुकी होती है। उसके ननदोइश की वजह से उसके अंदर सेक्स की इच्छा जग चुकी थी मगर उसके साथ करने वाला कोई नहीं था। उसे अपने ननदोइश पर भी गुस्सा आ रहा था और सोच रहीं थी, ‘‘ दोषी और पापी है वह पुरुष जो परायी महिला को छूता है मगर उससे भी पापी है वह पुरुष जो परायी महिला में इच्छा जगाता है और फिर उसे ‘कर’ नहीं पाता। इच्छा पैदा करने के बाद उस महिला की प्यास बुझा नहीं पाता। शायद सारे बुड्ढे नामर्द तो नहीं जो महिला को छू तो सकता है, उससे बड़ी-बड़ी बात कहकर फंसा भी सकता है, मगर उससे सेक्स नहीं कर सकता, शायद उसमें इतनी क्षमता ही नहीं जो जवान महिला की प्यास बुड्ढा बुझा सकें।’’

बड़ी मुश्किल से उस दिन उसे नींद आई और उसने मन ही मन जैसे संकल्प लिया ‘‘अब किसी बुड्डे के पास तो हर्गिज नहीं बैठूंगी। सोने के लिए और प्यार करने के लिए तो हमउम्र पार्टनर ही अच्छा। गोलू अच्छा था। ठीक से करता था। गोलू न सही, कोई और सही मगर बुड्डा तो हर्गिज नहीं..।’’

अगले दिन कामना के उठने से पहले ही उसका ननदोयश पितिया सास के यहां चले गए थे। शायद रात वाली बात के लिए उन्हें शर्म था तो कामना से बिना मिले ही चले गए।

कुछ दिन फिर इसी उधेड़बुन में बीत गए। फिर एक दिन कामना के जीवन में  नयापन आया जब गांव के ही एक सुंदर युवक का आगमन उसकी सास के यहां आया। सास ने कामना का परिचय उस युवक से कराया। रिश्ते में कामना उसकी काकी लगती। मगर इससे क्या, बहुत दिनों के बाद एक संुदर युवक मोहन का दर्शन हुआ था तो कामना ने उसे गौर से देखा, ‘‘रंग गोरा, पहनने-ओढने का भी उसमें अच्छा सलीका था और बातचीत भी बहुत  सहज ढंग से  और मुस्कुराते हुए कर रहा था। कुछ देर वह रहा मगर कामना को प्रभावित करके गया। सास से उसके बारे में और जानकारी पूछी तो पता चला, ‘‘मोहन की शादी के कुछ साल हो गए मगर पत्नी से विवाद चल रहा तो वह यहां पर अकेले रह रहा है। अच्छा-खासा कमाता भी है, फिर पता नहीं, पत्नी क्यों छोड़कर चली गई?’’ कामना के मन में मोहन के लिए एक आश रह गई थी। यद्यपि उसे पता था कि उन दोनों का मजाक का रिश्ता नहीं मगर  कामना का मन उससे विशेष रिश्ता जोड़ने के लिए आकर्षित हो रहा था।

उसका एक मन ने कहा, ‘‘ तू काकी है मोहन की, कुछ और मत सोच उसके बारे में मगर उसका दूसरा मन कहा, ‘‘खाली काकी कहने से कोई काकी थोड़े हो सकती हैं। वह हमसे बड़ा उम्र में तो कुछ और भी रिश्ता अगर बने तो बुरा क्या है?’’ मगर यह सब कामना के मन की बात थी और उस तक ही सीमित थी।

संयोगवश, कुछ दिन के बाद फिर मोहन किसी काम से कामना के यहां आया। उस दिन संयोग से सास घर पर नहीं थी और किसी काम से फिर किसी रिश्तेदार के यहां गई थी। अब कामना के पास मोहन से बातचीत करने के लिए अपने मनमुताबिक समय था। उसने उसका खूब आवभगत किया। उसका हाल समाचार पूछा और उसके पसंद नापसंद के बारे में जानना चाहा।

मोहन ने भी फिर उस दिन कामना को गौर से देखा, उसे लगा कि दोनों समान उम्र के तो वह खुलकर बात तो कर ही सकता है। उसने कहा,‘‘अगर शादीशुदा के जीवन में जीवन साथी के बिना रहना पड़े तो कैसा जीवन होता है? बीवी साथ नहीं तो मेरे हिस्से में भी स्त्री सुख नहीं। ’’

कामना ने सोचा,‘‘ क्यों ना इसके मन की आग को भड़का दिया जाय? अगर यह भड़क जाय तो क्या पता, मेरी आग यह शांत कर सकें। सुंदर है, जवान है और पत्नी के बिना रह रहा है तो ‘उसकी’ आकांक्षा से ग्रस्त है। मैं भी पति के बिना रहती हूं और प्यासी रहती हूं। अगर हमदोनों मिल जाय तो प्यास हमदोनों की मिट सकती है। ऐसी सोच आते ही कामना पूछ बैठी, ‘‘मोहन, तुम पूरा मर्द तो हो। समय बदल चुका है। आजकल किसी भी तरह की कमी महिला बर्दाश्त नहीं कर पाती। कहीं उसमें कमी तो नहीं।’’

इतना कहना था कि शायद मोहन भड़क गया और उसकी पुरुषार्थ जग गई। अब तक वह कामना को काकी के नजरिये से देख रहा था मगर यह बात सुनते ही उसने खुद को पुरुष और कामना को औरत के नजर से देखने लगा। मोहन को लगा कि एक औरत ने उसके मर्द होने पर शंका जाहिर की है, उसे गाली दी है, उसे अब खुद को साबित करके दिखाना ही पड़ेगा। अब साबित कहां करू? क्यों न उसी पर..!

उधर कामना अपनी बात कहने के बाद मुस्कुरा रही थीं और ऊपर से उसका ढलका हुआ आंचर, जैसे मोहन में आग लगा गयी और वह खुद को रोक नहीं पाया। कामना के पास आया और उसे अपने बाहों में भरकर चूम लिया और कहा, ‘‘ हूं मर्द मैं’’---कामना आनंद से विभोर हो गयी क्योंकि वह यहीं चाहती थी कि मोहन भड़के और उसके पास आए, बोली ‘‘तो दिखाओ’’ ..। इतना सुनना था कि मर्यादाएं टूटने लगी।

भूख अथवा प्यार सबसे अजीब कि यह जात-धर्म व रिश्तेदारी की भी परवाह नहीं करती और जब ज्यादा लगती है तो लोग कहीं भी और किसी के साथ भी खाना पसंद करने लगते हैं। यहां भी कुछ ऐसा ही हाल था। दोनों ही भूखे थे और रीति-रीवाज व बिरादरी के नाम पर इस भोजन को छोड़ना नहीं चाहते थे। कामना महिला थी और इस बात को जल्दी समझ गई थी। मोहन पुरुष था तो उसे समझने में देर लगी मगर जब वह समझ गया तो रूका नहीं। उसने कामना के साथ खाना शुरू कर दिया। कामना ने उसे मर्द है कि नहीं, इस पर शक जाहिर किया था तो उसे खुद को मर्द साबित करना था, वो भी शक करने वाले के ऊपर। इधर कामना को कब से भोजन नहीं मिला था तो वह किसी बढिया भोजन को पेटभर के खाना चाह रही थी तो उसे खूब पका रही थी। इस खेल में दोनों को ही मजा आ रहा था। जब मोहन ने ब्लाऊज का बटन खोलना शुरू किया तो कामना कुछ और करना शुरू कर दी। दोनों बहुत ही भूखे थे और इस पल को, भोजन को, एक-दूसरे को खूब भोगना चाहते थे। चूंकि शक मोहन पर किया गया था तो उसने कामना को बहुत उŸोजित कर दिया। उसके अंग-अंग को चूमने के बाद जब खुद को खोला व उससे जोड़ा तो कामना सबकुछ भूल गई। उसे बस मोहन और उससे मिलने वाला असीम आनन्द याद आ रहा था। वह पूरा का पूरा मोहन को पी लेना चाहती थी मगर...क्रमशः

-कुलीना कुमारी, 27-11-2016

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