तुम पत्थर बनकर राह में रोड़ा अटकाते रहना बेशक
हम हर मुश्किल राहों से निकलना जान लेंगी
अब जब हमने तय कर लिया है, आगे बढ़ना
तो फिर मंजिल पर आकर ही दम लेंगी।
कभी ईश्वर के नाम पर तो कभी रीतियों के नाम पर
तुमने हमारी जब-तब सीमाएं खींची
हम इन सीमाओं से ऊपर उठकर
खुद ही नया आयाम बनाएंगी।
अब हमें झूठी शान या इज्जत के नाम पर
जुल्म सहना बर्दाश्त नहीं
अब तो हम हर सड़े-गले रिश्तों से उबरकर
खुद ही स्नेहमयी रिश्ते बनाएंगी।
हां अब अपने पैरों में जंजीरें बंधवाकर
जेवरों से नहीं लदना हमें
हम स्वावलंबन की राह अपना
मिहनत की रोटी खुद ही तलाशेंगी।
हां, विस्तृत धरती, खुला आकाश
अब हमें भी चाहिए
तुम हममें कमियां निकालते रहना बेशक
हम तो अब अपनी मरजी से ही जिएंगी।
-कुलीना कुमारी
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