Tuesday 27 December 2016

स्त्री-पुरुष का मेल, mate


Image : Curtesy by http://img1.izismile.com/img/img3/20100608/640/beautiful_pencil_drawings_640_04.jpg

मैंने तुमको देख लिया
न तू मेरा हुआ न हो पाएगा
स्त्री-पुरुष का मेल तो मन का भरम है
न हम कभी एक हुए, न हो पाएगा

हम तुमसे इसीलिए जुड़े
कि ये बंधन समाज ने बनाए
मुझे मालूम मैं तेरे पास इसीलिए ठहरी
कि तू औरों से मुझे लूटने से बचाए
मगर तू लूटे या लूटे हजारों
लुटना मेरी नियति है
इसे न कोई बदल पाएगा

दुनिया की कैसी ये रीति
ब्याह के नाम पर एक अजनबी के हवाले
शोषण करने छोड़ दिया जाए
पिता भाई भी कितने गंदे
ब्याह के बाद ओ दरवाजा बंद कर जाए
जब अपने अपने नहीं तो तुमसे शिकवा करके भी क्या कर लूंगी
घुट-घुट कर अब जीना नसीब
ऐसे ही पल बीतता जाएगा

एक शिकवा उस ईश्वर से भी
हम महिला को ही मां क्यों बनायी
बच्चांे का जिम्मा हमारे हिस्से ही क्यों
हमारे में ही ममता क्यों बसायी
मजबूरियां हमारे हिस्से में ही क्यों
कभी तो मन करे एक पल में ही सब खतम कर दूं
मगर जाऊं तो जाऊं कहां
ये मोह न जा पाएगा

-कुलीना कुमारी, 27/12/2014

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